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ज्ञान वाणी

गुरु सेवा से मिलता ज्ञान का मेवा: मुनि विजयजी

गुरु सेवा से मिलता ज्ञान का मेवा: मुनि विजयजी

नैल्लोर जिले में आया दोरवारी सत्रम् (छात्रावास) में युगप्रभावकाचार्य श्री जयन्तसेन सूरिजी के सुशिष्य मुनि श्री संयमरत्न विजयजी ने बच्चों को हितशिक्षा प्रदान करते हुए कहा कि आलस ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। आलस से विद्या नष्ट हो जाती है।कुरूप को भी रूपवान-सुंदर बनाने का सामर्थ्य विद्या में होता है।

विद्यार्थी को कामुकता,क्रोध,लोभ,रसलंपटता,श्रृंगार, नाटक,अतिनिद्रा अतिसेवा इन आठ अवगुणों का त्याग कर देना चाहिए। जो सुखार्थी होता है,वह विद्या को छोड़ देता है और जो विद्यार्थी होता है,वह सुख को छोड़ देता है। सुख चाहने वाले को विद्या की प्राप्ति नहीं होती और विद्याचाहक को कभी सुख की चाहना नहीं रहती। विद्या कामधेनु की तरह होती है,जो सर्वइच्छा को पूर्ण करती है।ज्ञानाभ्यास,तपस्या व दान में कभी भी संतोष नहीं करना चाहिए।

गुरु के बिना जो मात्र पुस्तकों से ही विद्या प्राप्त करता है,वह विद्या विद्वानों की शोभा में शोभायमान नहीं होती। पुस्तक में रहने वाली विद्या और दूसरों के पास रहा हुआ धन अवसर आने पर दोनों ही किसी काम के नहीं रहते।इसलिए ज्ञान हमारे जीवन में,हमारे भीतर होना चाहिए। जिस प्रकार कुदाली से जमीन खोदने पर पानी प्राप्त होता है,वैसे ही गुरु सेवा करने से ज्ञान का मेवा प्राप्त होता है।

ऊँची सोच,कड़ी मेहनत व पक्का इरादा रखने वाला हर स्थान में सफलता को प्राप्त करता है। जैसे किसान फल प्राप्त करने के लिए ही बीज बोता है,वैसे ही हमें भी नम्रता रूपी फल प्राप्त करने के लिए विद्या व संस्कारों का बीजारोपण करना चाहिए। माता-पिता व गुरुजनों का सन्मान करना ही हमारी शिक्षा का वास्तविक फल है।

जैसा खाएंगे अन्न,वैसा होगा मन। जैसा पिएंगे पानी,वैसी होगी वाणी।जैसी होगी दृष्टि,वैसी दिखेगी सृष्टि। हमें शिक्षा के साथ ही शुद्ध आहार,शाकाहार को अपनाना चाहिए। प्रवचन के पश्चात् बच्चों को हितशिक्षा प्रदान करने हेतु प्रिंसिपल व अध्यापकों को तेलुगु भाषा में अनुवादित ‘क्षमा’ नामक पुस्तक मुनि श्री ने प्रदान की।

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