ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता जी ने
धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि महाराष्ट की धरा पर गुगलिया परिवार में जन्मे बालक नेनीचंद ने पिता देवीचंद माता हुलसा बाई का नाम रोशन किया है।
इस विश्व वाटिका से बहुत से फूल खिलते हैं और मुरझा जाते हैं। आकाश में तारे उदित होते हैं और अस्त हो जाते हैं इस धरातल पर अनेक आत्माये आती है और विदा हो जाती है।
परन्तु अपने आदर्शो की छाप से जगत को चमकाने वाले वाले आचार्य श्री सम्राट श्री आनंदऋषि जी मo साo का आज के दिन जन्म हुआ था।
आप श्री भक्ति प्रिये थे। विनम्रता, विवादों से दूर रहना, सहिषुणता आपके गुण थे। मात्रा 13 साल के उम्र में संयम अंगीकार कर 78 साल तक निस्पृह रूप संयम का पालन करते हुए हजारो अनुयाइयों को अहिंसामय जैन धर्म से जोड़ा।
आप श्री ने अखिल भारतीय श्रमण संघ के आचार्य पद को वर्षो तक शुभोषित किया आपका व्यक्तित्व हिमालय सा ऊंचा, सागर का गंभीर, नवनीत के सामान कोमल, मिश्री के सामान मीठा,चन्द्रमा के सामान शीतल,आदि गुणों से युक्त था साथ ही आपका भारतीय भाषाओ पर अधिकार था अतः गुरु महान होते हैं संसार सागर में भर्मण करने वाली आत्माओ के लिए गुरु ही आवलंबन हैं इसीलिए हम सब को गुरु का सम्मन करना चाहिए।