चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन भवन में विराजित साध्वी नेहाश्री ने शुक्रवार को प्रवचन में दृष्टि की विवेचना करते हुए कहा कि दूसरों के दोष देखना मिथ्यादृष्टि है और स्वयं के दोष देखना सम्यक दृष्टि होती है।
हम बाहर से ही देखने का प्रयास करते हैं। कचरे में हीरे-मोती नहीं होते, उसके लिए गहराई में जाना पड़ता है। आत्मा के रोग का जब तक पता नहीं होगा, तब तक उसका इलाज नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने कहा अवगुणों को देखने वाले दुर्जन होते हैं और गुणों को देखते हैं वे सज्जन। दोष देखने वाला संसार में भटकता रहता है। अगर हम दूसरे के गुणों को देखते हैं तो वे स्वयं में भी आत्मसात हो सकते हैं।
हमें गुणग्राही बनना चाहिए। आदेय कर्म के उदय से सब काम हो जाते हैं, सभी आदर करते हैं लेकिन अनदेय नामकर्म का उदय है तो कोई बात नहीं मानता। इसके लिए किसी को दोष नहीं दे सकते।
अपने कर्म का उदय होता है। व्यक्ति को संयोग अपने कर्मों के अनुसार मिलता है। इसलिए किसी को दोष देकर उसके साथ द्वेष नहीं करें।