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क्षमा दिवस पर अपने घर को स्वर्ग बनाने का संकल्प लें: साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

क्षमा दिवस पर अपने घर को स्वर्ग बनाने का संकल्प लें: साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

कमला भवन में सााध्वी रमणीक कुंवर जी के सानिध्य में मनाया गया क्षमावाणी पर्व

 

Sagevaani.com @शिवपुरी। क्षमा दिवस चार्तुमास और पर्यूषण पर्व का सिरमोर दिवस है। क्षमा को अपने जीवन में उतारे बिना पर्यूषण पर्व की सार्थकता व्यर्थ है। क्षमावाणी दिवस या मैत्री दिवस पर सबसे पहले अपने घर को स्वर्ग बनाने का संकल्प लें। घर स्वर्ग तब बनेगा जब परिवार के एक-एक सदस्य का हृदय पवित्र और निर्मल होगा। पवित्र हृदय में ही क्षमा का वास होता है उक्त प्रेरक व्याख्यान प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने स्थानीय कमला भवन में क्षमावाणी दिवस पर आयोजित विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए।

इस अवसर पर गुरूणी मैया साध्वी रमणीक कुंवर जी, तपस्वी रत्न साध्वी पूनम श्री जी, मधुर गायिका साध्वी जयश्रीजी और आशु कवि और मधुर गायिका वंदना श्री जी ने भी मैत्री दिवस पर अपनी ज्ञात और अज्ञात गलतियों के लिए 84 लाख जीव योनि सहित शिवपुरी श्रीसंघ से भी क्षमायाचना की। श्वेताम्बर जैन श्री संघ के अध्यक्ष राजेश कोचेटा, तेजमल सांखला और धर्मेन्द्र गुगलिया ने भी समाज की ओर से तथा अपनी ओर से जैन साध्वियों से क्षमा याचना की। उन्होंने कहा कि साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज के चार्तुमास के कारण श्वेताम्बर जैन समाज में जागृति और धर्मभावना की वृद्धि हुई है।

सबसे पहले साध्वी वंदना श्री जी ने सुमधुर स्वर में भजन का गायन कर घर को स्वर्ग बनाने के उपाय बताए। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि क्षमा मांगने की शुरूआत हमें घर से करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज घरों का वातावरण इतना दूषित हो गया है कि भाई भाई से नहीं बोलता, पुत्र अपने पिता ने नहीं बोलता, सास और बहु में झगड़ा चला करता है, देवरानी और जेठानी एक दूसरे के प्रति विष वमन करती है। ऐसे वातावरण से घर नरक बनता है और नरक में न तो कभी समृद्धि आती है और न ही शांति का वास होता है। उन्होंने कहा कि घर के प्रत्येक सदस्य को अपना दिल बड़ा रखना चाहिए।

यदि किसी से कोई अपराध भी हो गया हो तो मन में उसे क्षमा करने की भावना होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सेवा, संयम और समझौते का आलम्बन लेकर घर को स्वर्गर् बनाया जा सकता है। साल भर के वैर एक क्षमावाणी पर्व पर धुल सकते हैं। उन्होंने कहा कि क्षमा का दुश्मन क्रोध है और क्रोध इसलिए आता है क्योंकि हमारे मन में अहंकार है। क्षमा को अपने मन में धारण करने के लिए मन से अहंकार की मुक्ति आवश्यक है। भगवान महावीर ने क्रोध, मान, माया और लोभ को कषाय की श्रेणी में रखा है। इनमें सबसे अधिक खतरनाक मान है और मान के कारण ही क्रोध आता है। साध्वी पूनम श्री जी और साध्वी जयश्री जी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

क्षमा का अर्थ है अपने मान का क्षय करना: साध्वी रमणीक कुंवर जी

साध्वी रमणीक कुंवर जी ने अपने उदबोधन में बताया कि क्षमा में क्ष का अर्थ क्षय करना है जबकि म मान का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि मान कहें, सम्मान कहें या अभिमान इन से दूर रहने का उपदेश भगवान महावीर ने दिया है, लेकिन हमारी मान की प्रवृत्ति इतनी सघन है कि इसके लिए पैसे खर्च करते है और अखबारों में विज्ञापन तक छपवाते हैं। उन्होंने कहा कि यदि हमने अपने मान का क्षय कर लिया तो जीवन में क्षमा स्वयं आ जाएगी। क्षमा से बड़ा कोईर् तप नहीं है। जिसके जीवन में क्षमा आ गई उसे केवल्य ज्ञान प्राप्त करने से कोई रोक नहीं सकता और केवल्य ज्ञान प्राप्त करने वाला साधक निश्चित रूप से मोक्ष जाता है।

संवाद वंद होते ही सारे रास्ते बंद हो जाते है

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि गलतियां करना मानव का स्वयंभाव है, लेकिन गलतियों को दोहराना शैतान की प्रवृत्ति है तथा गलतियों से सबक लेकर उसे सुधारना देवत्यव का लक्षण है उन्होंने कहा कि हमारा किसी से भी लड़ाई झगड़ा विवाद या फौजदारी हो लेकिन बोल चाल बंद नहीं करना चाहिए। संवाद कायम रखना चाहिए। क्योंकि संवाद वंद होते ही सारे रास्ते बंद हो जाते है।

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