Share This Post

ज्ञान वाणी

क्रोध मित्रता की फसल को नष्ट कर देता है

क्रोध मित्रता की फसल को नष्ट कर देता है
चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में मुनि संयमरत्न विजय ने कहा तपस्या के फल को क्रोध विफल कर देता है जबकि क्रोध दया और मित्रता की फसल को नष्ट कर देता है।

समताधारक प्राणी को सभी वंदन-नमन करते हैं और वह हर प्रकार की लक्ष्मी प्राप्त करने योग्य बन जाता है। समता साधक की कीर्ति चारों दिशाओं में फैल जाती है और देव व मानव उसके सेवक बनकर उसकी महिमा का वर्णन करते हैं।

क्रोध हमारे भीतर रहे आत्मधन को क्षणभर में भस्म कर देता है। क्रोध की अग्नि को हम समता के जल से ही बुझा सकते हैं। क्रोध कमजोर को ही आता है, बलवान के आगे झुक जाता है।

क्रोध का परिणाम बड़ा घातक होता है। एक बार क्रोध करने से हमारी एक हजार ज्ञान कोशिकाएं जलकर नष्ट हो जाती है। जो क्रोध नहीं करता वह एक समय भोजन करके भी ऊर्जावान बना रहता है, स्वयं पर नियंत्रण बना रहता है।

जिंदगी में सदा मुस्कुराते रहें, फासले कम करें, ताने मारना छोड़ेें और प्रेम करना सीखें। मुनि भुवनरत्न विजय ने भी उद्बोधन दिया।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar