चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा कषाय और योग के निमित्त से ही कर्मों का बंध होता है। जिस प्रकार एक शांत सरोवर में कोई व्यक्ति पत्थर डालता है तो उसमें तरंगी उत्पन्न होने लग जाती है उन तरंगों के कारण किनारे पर पड़ी मिट्टी पानी के साथ भीतर प्रवेश कर लेती है, ठीक उसी प्रकार कषायों के वेग से जब आत्मा में कंपन होता है तब कर्म आत्मा के साथ लग जाते हैं।
मुनि ने कहा सोमवार को यह चिंतन करना चाहिए आज वार का प्रथम दिवस है इसलिए बोनी खराब नहीं करनी है। मंगलवार को कोई अमंगल न हो इसीलिए क्रोध का त्याग करना चाहिए। बुधवार यह संदेश देता है बुद्ध को न हो युद्ध। गुरुवार के दिन यही सोचना कि आज गुरु की शरण में रहना है तो क्रोध से दूर रहना होगा।
शुक्रवार सभी का शुक्रिया अदा करने का वार है उस दिन भला क्यों किसी पर क्रोध करें। शनिवार को यदि क्रोध किया शनि लग जाता है और रविवार तो छुट्टी का दिन है उस दिन गुस्से की छुट्टी कर देनी है।
इस प्रकार अगर व्यक्ति का संकल्प सुदृढ़ हो जाए तो जीवन में शांति बनी रहेगी। जिस प्रकार करेले से मिठास प्राप्त नहीं हो सकती उसी प्रकार क्रोध से प्रसन्नता प्राप्त नहीं हो सकती। क्रोध आना स्वाभाविक नहीं है अपितु वह विभाव दशा है। व्यक्ति की यह गलत धारणा है कि क्रोध करना जरूरी है।
मुनि ने क्रोध आने के चार कारण बताए- क्षेत्र, वास्तु, शरीर, उपाधि। इसके अलावा इच्छा के विरुद्ध कार्य होने पर भी क्रोध उत्पन्न हो सकता है। क्रोध उत्पत्ति के निमित्त उपस्थित होने पर भी यदि व्यक्ति क्षमा धारण कर ले तो क्रोध नहीं आएगा ।
क्रोध के निमित्त ही क्षमा के निमित्त होते हैं। भय के कारण काम बिगड़ जाता है। भय को जीतने वाला ही अपने कार्य में सफल हो सकता है।
मुनिवृंद के सानिध्य में शनिवार को प्रवचन प्रभावक डॉ. पदमचंद्र मुनि का 56वां जन्मदिवस मनाया जाएगा। उसके उपलक्ष्य में भगवान महावीर आई हॉस्पिटल द्वारा आई कैंप भी लगाया जाएगा।