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ज्ञान वाणी

किसी की कमियों को न ढुंढ़े : उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

किसी की कमियों को न ढुंढ़े :  उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. रविवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने अरिहंत वैकुंठ, चेन्नई में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि तीर्थंकर जन्म से तीन ज्ञान के धनि होते हैं। मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान। उनका मोक्ष में जाना पक्का होता है, केवलज्ञान भी पक्का होता है लेकिन फिर भी वे दीक्षा लेते हैं। यह वैसा ही है जैसे एक अरबपति भी पैसा कमाने को प्रयास करे, और गरीब भी प्रयास करे। जबकि हमारे पास एक ज्ञान भी पूरा नहीं है तो भी हम पुरुषार्थ करना छोड़ देते हैं और वे सर्वसमर्थ होने के बावजूद भी पुरुषार्थ करना नहीं छोड़ते।

परमात्मा का दीक्षा कल्याणक का अनूठा अवसर हमें यही समझने का दिन है कि तीर्थंकर और हममें। हम साधना करते हैं अपने सपनों को सत्य करने के लिए और तीर्थंकर साधना करते हैं संसार के सभी जीवों के कल्याण और उन्हें धर्म के साथ जोडऩे को। उनका निश्चय होता है- जो संयम की राह पर चलना नहीं चाहता उसे भी संयम की राह पर चलाकर रहंूगा, जिसने नरक का आयुष्य बांधा है उसे भी तीर्थंकर नामकर्म की राह पर लाने के संकल्प के साथ दीक्षा लेते हैं।

तीर्थंकर दान भी देते हैं तो इस तरह कि उसे वापस मांगने का मौका ही न मिले। वे बीमारी का परमानेंट इलाज करते हैं। जबकि हम अपने अवसर बनाए रखना चाहते हैं कि सामने वाला सदैव हमारे पर निर्भर रहे। उस समय परिवार के बड़ों को बहुत परेशानी हो जाती है जब छोटे उनकी राय के बिना निर्णय लेते हैं। उन्हें तो खुश होना चाहिए कि वे अपने निर्णय लेने के योग्य बन गए हैं। इस बात पर खुश होना चाहिए कि मेरे बिना भी काम चल सकता है। परमात्मा की शरण में जो एक बार चला गया उसे वापस और किसी की शरण में जाने की जरूरत ही नहीं रहती। इसीलिए तीर्थंकर की भावना और दीक्षा अनूठी होती है।

उनकी दीक्षा के समय तीसरा प्रहर के ढलते सूरज में दीक्षा ग्रहण की। हर पल के दो आयाम है। चढ़ते सूरज में घटती छाया और घटते सूरज में बढ़ती छाया। पश्चिम दिशा में जानेवाली छाया घटती जाती है और पूरब की ओर जानेवाली छाया बढ़ती जाती है। जो सूरज को सामने रखकर चलता है उनकी छाया बढ़ती चली जाती है। यही साधना का सूत्र है।

आज परमात्मा प्रभु का दीक्षा कल्याणक का दिन है। परमात्मा सभी के मन को जानते थे लेकिन उनके बारे में सभी को बोलते नहीं थे। उन्होंने गोशालक के बारे में सभी जानते हुए भी उस कृपा बरसाई। उन्हें पता था कि वह विद्याओं का दुरुपयोग करेगा। जो खिलाफत से डरकर किसी पर कृपा बरसाना बंद करते हैं वे कायर होते हैं। हमें भी किसी की तरफ उंगली नहीं उठानी चाहिए। किसी पर आक्षेप और निन्दा नहीं करना चाहिए। परमात्मा जब सबकुछ जानने के बावजूद भी किसी की निन्दा नहीं करते। वे पूरी दुनिया के मन को देखकर भी परेशान नहीं होते।

परमात्मा जब दीक्षा ले रहे थे उस समय भगवान पाश्र्वनाथ की परंपरा में सर्वज्ञ और अवधिज्ञानी भी थे, पर उन्होंने किसी के पास दीक्षा नहीं ली। जिसे अपनी स्वयं की मंजिल पर चलना हो, वह किसी के अंडर में नहीं चलता। जो नवनिर्माण के लिए सबसे हटकर चलता है उसे खतरे भी उतने ही झेलने पड़ते हैं। पिंजरे में रहनेवले को चुग्गा तो मिल जाएगा पर आसमान नहीं मिलता और आसमान के रहनेवाले को चुग्गे का मोह छोडऩा पड़ेगा, उसके लिए कब शिकारी का तीर आएगा, पता नहीं, पिंजरे में सुरक्षा है सुविधा है लेकिन आजादी नहीं। इसीलिए तीर्थंकर किसी परंपरा में दीक्षा नहीं लेते हैं। अनुकूलता और सुविधा छोडऩा बहुत मुश्किल है। जिसने-जिसने अपना कंफर्ट जोन छोड़ा, वही मंजिल पर पहुंचा है। तीर्थंकर की दीक्षा इसी कंफर्ट जोन से बाहर आने की दीक्षा है। इसीलिए ही तो जब दीक्षा के दूसरे दिन उनके भाई नंदीवर्धन आते हैं और उन्हें सुरक्षा देने की बात करते हैं, तो परमात्मा सुरक्षा और सुविधा लेने को मना कर देते हैं।

इस संसार का कुछ भरोसा नहीं, आपकी सुरक्षा करने वाला भी हमला कर सकता है। परमात्मा कहते हैं कि बाहर की सुरक्षा की चिंता मत करो और अपने अन्दर की सुरक्षा करो। अपने कंफर्ट जोन से बाहर आएं। पुरुषार्थ करते हुए रणभूमि पर भी मौत मिलती है और हॉस्पीटल के बेड पर भी मौत मिलती है।

मजबूरी में कुछ भी करोगे तो कमजोर ही रहोगे। सुविधा मिलने के बावजूद जो सुविधा को स्वीकार नहीं करते वे मजबूत बनते हैं। अपनी सुविधाओं के बिना रहने का प्रयास करोगे तो अपने अन्तर की शक्ति जाग्रत होगी। जो डर से मुक्त हो जाता है वह मरण से भी भयमुक्त हो जाता है। परमात्मा के दीक्षा कल्याण के पावन अवसर पर संकल्प लें कि किसी की कमियों को उजागर न करें और कोई दूसरा आपकी कमियां बताएं तो उस पर भी नाराज न हो। यदि यह संकल्प जीवन में आ जाए तो परिवार के सारे झगड़े मिट जाएंगे।

भगवान महावीर डायलिसिस सेंटर, भगवान महावीर हॉस्पीटल, अर्हम पुरुषाकार ध्यान साधना और गुरु आनन्द फाउंडेशन के पदाधिकारी पूना, हैदराबाद, सिकन्दराबाद सहित अनेक श्रावक-श्राविकाएं धर्मसभा में उपस्थित रहे।

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