चेन्नई. रायपेट्टा में श्रीपुरम स्ट्रीट स्थित केसर हॉल में कपिलमुनि कहा मनुष्य का जीवन ही इस योग्य है कि हम अपना सही मूल्य पहचानें, यदि जीवन में यह भूल गए तो अन्य जन्मों में इसका सुधार संभव नहीं है । हर कदम पर व्यक्ति को प्रत्येक क्रिया में विवेक रखना चाहिए। जरा सी लापरवाही कभी कभी घोर अनर्थ कर देती है ।
व्यक्ति के जीवन में कर्मो के आक्रमण का कारण है उसके भीतर आस्था का दीप बुझ जाना। जिसने देव गुरु धर्म का सहारा लिया है उसके जीवन से सारे भय विदा हो जाते हैं । भयभीत वही होता है जिसका कोई सहारा नहीं होता। विपरीत हालात में इंसान जो कुछ भी भोगता है उससे सर्वाधिक प्रभावित उसका मन होता है। दरअसल सुख दु:ख को मन ही भोगता है।
आज के दौर में सहनशीलता घटती और स्वच्छंदता बढती जा रही है जिससे संयुक्त परिवार प्रथा टूटने लगी है । व्यक्ति की संकुचित सोच और स्वार्थ प्रधान जीवन शैली ने अपनों को भी पराया बना दिया है। परिवार और संघ समाज की एकता बलिदान और त्याग पर ही आधारित होती है। व्यक्ति एक दूसरे के हित का खयाल रखते हुए स्वार्थी भावना से ऊपर उठे और परमार्थ के कार्य सम्पन्न करके जीवन को सार्थक मूल्य प्रदान करना चाहिए।
इंसान को कर्म के प्रति सावचेत रहना चाहिए। जीवन में जो कुछ भी अच्छा बुरा घटित होता है वो कर्म का ही प्रतिफल है। धार्मिक कार्यों में बाधा डालने से अंतराय कर्म का बंध होता है कालांतर में जिसके उदय से व्यक्ति के हरेक कार्य में बाधा आती है। किसी के अच्छे कार्य में व्यवधान डालने का पाप हर्गिज भी नहीं करना चाहिए।
कर्म के मर्म को समझे बगैर धर्म को समझना बेहद मुश्किल है इसलिए कर्मों की कातिल कूटनीति को दृष्टि के समक्ष रखकर जीवन जीना चाहिए। यहाँ कर्म की अदालत में किसी का बच पाना असंभव है। संसार के सभी शुभ अशुभ संयोग कर्म के अधीन हैं। कर्म के उदय को समभाव से भोग लेने की कला का नाम ही धर्म है। शनिवार को प्रवचन सवेरे 9.15 बजे से इसी हॉल में होगा। जवाहरलाल नाहर ने सभी का सत्कार किया।