चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा हिमगिरि को लांघना, समद्र को भुजाओं से पार करना, आकाश को अपनेे हाथों से नापना जैसे कठिन है वैसे ही गुरु के गुणों का संकीर्तन करना भी कठिन है। फिर भी भक्तजन श्रद्धा के साथ गुरु का गुणग्राम करते हैं। मां यदि नहीं होती तो हम दुनिया में नहीं आ सकते थे और गुरु का कहना नहीं मानें तो संसार रूपी सागर को पार नहीं कर सकते।
जन्म कर्मों के अनुसार होता है। आचार्य उमेश मुनि का जन्म झाबुआ जिले में हुआ। नगर में उत्सव था इसलिए उनका नाम उत्सवलाल रखा गया। बचपन से ही साहित्य वाचन में उनकी रुचि थी। ग्रंथ पढ़ते हुए उन्हें वैराग्य की भावना जाग्रत हुई। वे कई भाषाओं के प्रकांड विद्वान थे। वे स्वभाव से गुणग्राही, सरल, सहज, विवेकी, लघुता के भाव गुरु भक्ति और आत्मा की साधना से परिपूर्ण और विनयवान थे।
वे आदेश नहीं देते थे। जल्दबाजी का स्वभाव नहीं था। मायाचारी की प्रवृत्ति नहीं थी। पराक्रम करने की उत्कृष्ट चेष्टा थी। मन हमेशा शांत रहता था और चिड़चिड़ेपन से कोसों दूर थे। महापुरुषों के इन गुणों का समावेश हमारे जीवन में होगा तो हमारी भी तकदीर, ताबीर और तासीर अपने आप बदल जाएगी।