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कर्मों के उदय से जीव होता है दुखी और सुखी: साध्वी कंचनकंवर

कर्मों के उदय से जीव होता है दुखी और सुखी: साध्वी कंचनकंवर

यह संसार है दुखमय, यहां कोई सुखी नहीं हुआ

चेन्नई. बुधवार को पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम जैन मेमोरियल सेन्टर में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सानिध्य में साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधा’ ने कहा कि सफलता के कर्मवाद सिद्धांत से सभी जीव बंधे हैं। कर्मों के उदय से जीव दुखी और सुखी होता है।

कर्मों का बंध न हो इसके लिए अच्छे कार्यों का श्रेय दूसरों को दें और गलतियों की जिम्मेदारी स्वयं लेनी चाहिए। दिन के बाद रात और रात के बाद दिन है उसी तरह अलग-अलग कर्मों का उदय भी निश्चित है। उन्होंने विभिन्न कर्मों के उदय के बारे में बताया।

साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशु’ ने कहा कि महावीर स्वामी ने अपनी देश में इस संसार को दुखमय बताया है। यहां प्रत्येक प्राणी पीड़ा पा रहे हैं, फिर भी सभी को संसार प्रिय है। व्यक्ति सुख की कामना करता है लेकिन इस दुख के आरे में उसे सुख कहां से प्राप्त होगा। मनुष्य को सुख की तीन भ्रांतियां रहती है- पहली- सुख कभी न कभी तो मिलेगा, दूसरी- सुख कहीं न कहीं तो मिलेगा। तीसरी- किसी न किसी से सुख मिलेगा।

जीव सुख की आशा लगाता है कि इस आज नहीं तो कल वह सुखी होगा, एक स्थान पर नहीं है तो दूसरे पर वह सुखी हो जाएगा या इस व्यक्ति से सुखी नहीं है तो दूसरे से सुखी हो सकता है। यह संसार ही दुखमय है आज तक कोई यहां सुखी नहीं हुआ है, फिर भी सभी को प्रिय होने का कारण है यहां के क्षणिक सुख को वास्तविक सुख मानने की गलती।

सच्चा सुख वह है जिसे पाने के बाद अन्य कोई आवश्यकता ही न रहे। लेकिन क्षणिक सुख के बाद लालसा बढ़ती जाती है। सात प्रकार के सुख बताए गए हैं- स्वास्थ्य, संपत्ति, सुविधा, संबंध, सम्मान, सौभाग्य, सद्गति।

पहला सुख स्वस्थ शरीर कहा गया है लेकिन एक छोटा-सा कीट काट ले तो आपका सुख दुख में बदल सकता है क्योंकि वह क्षणिक सुख है। जिस शरीर को अपना समझकर पालन-पोषण करते हैं उसमें किस क्षण कौन-सा रोग जाग्रत हो जाए कोई नहीं जानता।

ज्ञानी कहते हैं- जीवन, व्यवहार, शरीर को स्वस्थ रखने के लिए किसी को याद नहीं, किसी से फरियाद नहीं, व्यर्थ में संवाद नहीं, किसी से विवाद नहीं, खाते समय स्वाद नहीं खाने के बाद प्रमाद नहीं। ये तीन बातें जीवन में अपना लें तो हमारा जीवन, व्यवहार और शरीर तीनों स्वस्थ रहेंगे। आहार की शुद्धि हो तो रोग भय नहीं, व्यवहार शुद्धि तो लोभ भय नहीं और इंद्रिय वश में है तो भोग का भय नहीं रहेगा।

धर्मसभा में अनेकों तपस्वीयों ने तेला, बेला, उपवास के पच्चखान लिए। चातुर्मास समिति के पदाधिकारियों सहित अनेकों श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थित रही। ११ अगस्त को मरुधर केसरी श्री मिश्रीमलजी एवं लोकमान्य संत श्री रूपचंदजी महाराज की जन्म-जयंती मनायी जाएगी। १२ अगस्त को प्रात: ९ से ९.३० बजे जाप रहेगा।

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