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ज्ञान वाणी

कर्मवाद के न्यायालय में नहीं होता पक्षपात: आचार्य महाश्रमण

कर्मवाद के न्यायालय में नहीं होता पक्षपात: आचार्य  महाश्रमण
तिरुचिरापल्ली . जिले के  पेट्टावेथलाई गांव स्थित रत् ना हायर सेकेण्ड्री स्कूल में पधारे आचार्य  महाश्रमण ने छात्रों और श्रद्धालुओं को अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्प भी ग्रहण करवाते हुए कहा कि धार्मिक जगत का और दार्शनिक जगत का एक सिद्धांत है कर्मवाद। आत्मवाद भी एक सिद्धांत है और आत्मवाद से जुड़ा हुआ दूसरा सिद्धांत कर्मवाद है।
आदमी अथवा प्राणी जैसा कर्म करता है, आचरण करता है, उसके अनुसार उसको फल भी मिलता है, मानों प्रतिक्रिया होती है। जैसा किया है, वैसा फल प्राप्त होता है। कर्मवाद एक ऐसा सिद्धांत है, जिसके अनुसार हर प्राणी के साथ न्याय होता है। वहां न तो कोई भ्रष्टाचार चलता है, न कोई प्रलोभन, न कोई धमकी अथवा भय चलता है। ऐसा लगता है कि सबसे बढिय़ा न्यायापालिका कर्मवाद है, जहां कोई पक्षपात नहीं होता। कर्म के हिसाब से सही और सटीक न्याय होता है। यह एक ऐसा सिद्धांत है कि जैसा आदमी करेगा, वैसा पाएगा। 
कोई आदमी इस जीवन में भौतिक सुख-सुविधाओं से सम्पन्न है तो यह उसके पूर्व जन्म के सुकृत का फल हो सकता है। कोई दु:खी है तो वह भी उसके पूर्वकृत कर्मों का फल हो सकता है। कब कौन से कर्म उदय में आ जाएं, यह कहा नहीं जा सकता।
इसलिए ऐसा माना जा सकता है कि कर्म के न्यायालय में देर है, किन्तु अंधेर नहीं है। इसलिए आदमी को बुरे कर्मों से बचने का प्रयास करते हुए सत्पथ पर चलने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को दूसरों का बुरा नहीं, बल्कि किसी का भला करने का प्रयास करना चाहिए। भले का भला होता है और बुरे का बुरा होता है। इसलिए आदमी को बुरे कर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए। 

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