जयतिलक मुनि जी बताया कि करुणा के सागर भगवान महावीर ने भव्य जीवों को मोक्ष मार्ग उपदेश दिया और जिनवाणी रूपी गंगा प्रवाहित की ! आज का दिन चातुर्मासिक विदाई दिन ! एवं बधाई ! मुनिराज को न बधाई की आवश्यकता है न विदाई की! वो तो एक नदी का रूप है जो जन जन का कल्याण कर सागर में विलीन होती है।
वैसे ही मुनिराज आत्म कल्याण, जन कल्याण करते हुए जब तक सिद्धाशिला में विराजमान नहीं होते उनकी यात्रा अनवरत चलती है। जब तक संसार में है उन्हें विदाई न दी जाती है! मुनिराज तो कुछ काल के लिए अतिथि बन कर आते है! अतिथि के मोह नहीं आता ! आना है तो जाना निश्चित है। यह चार माह में एक धर्म का संसार बसाया जाता है। जहाँ सभी मिल कर के आमोद प्रमोद के साथ कर्म निर्जरा का पुरषार्थ करते है! जिन जिन श्रावक श्राविकाओं ने जितना पुरुर्थ किया उतनी कर्म निर्जरा किया इस चातुर्मांस में जप तप त्याग आदि के लिए प्रेरणा देनी पड़ी, उपालम्भ भी देना पड़ा!
मुनिराज के पास तो पच्खान है तो मैं उसी को मनुहार कर सकता हूँ। भावना तो सबके पच्खान की होती है किंतु काया के आसक्ततावश मन कुछ क्षोभ उत्पन्न हो जाता है! किंतु आपके प्रयास और मेरा मन कुछ क्षोभ उत्पन्न हो आपके प्रयास मेरी प्रेरणा से तप त्याग हो गया यह विदाई समारोह मेरा नहीं आपका है! मैं तो एक स्थानक से दूसरे स्थानक जाऊँगा ! जब तक घट में में प्राण है निरंतर धर्म पुरषार्थ करता रहुगां ! आप निरंतर आकर यहां धर्म ध्यान करते रहे। प्रतिदिन स्थानक आते रहे। कम से कम 5 नवकार मंत्र गिने! इन बढे हुए कदमों को पीछे हटना मत। आप इसी
तरह निरंतर आते रहे। फिर आपकी प्रेरणा की आवश्यकता नहीं होगी ! इस धर्मस्थान को पवित्र बनाए रखना एवं अपने ह्रदय को धर्म का स्थान बनाए रखो आपके लिए कल्याण कारी होगा। अपने सामर्थ्यनुसार आकर धर्म आराधन करे! सभी प्रकार के आनंद की प्राप्ति होगी। यदि मेरे कारण किसी को भी कोई मन वचन काया से ठेस पहुँची हो तो मैं समस्त श्री संध से बालक की भांति क्षमा याचना करता हूँ।
मंत्री नरेंद्र मरलेचा ने बताया कि
पुज्य जयतिलक जी म.सा दिनांक
9-11-22, बुधवार 9 बजे जैन भवन रायपुरम से चातुर्मास सम्पन्न करके MC रोड, जैन भवन पधारेंगे।