नेमीनाथ भगवान के दीक्षा कल्याणक पर उनके जीवन से ले प्रेरणा
Sagevaani.com @चेन्नई ; श्री मुनिसुव्रत जिनकुशल जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में श्री सुधर्मा वाटिका, गौतम किरण परिसर, वेपेरी में शासनोत्कर्ष वर्षावास में द्वितीय श्रावण शुक्ला छठ के मंगल प्रभात में धर्मपरिषद् को सम्बोधित करते हुए गच्छाधिपति आचार्य भगवंत जिनमणिप्रभसूरीश्वर म. ने कहा कि आज नेमीनाथ भगवान का दीक्षा कल्याणक दिवस है। महातपस्वी शरणसागरजी महाराजजी की पुण्यतिथि भी है। लोहावट के चातुर्मास में आषाढ़ शुक्ल चौवदस से तपस्या प्रारम्भ की और 52वें दिन की तपस्या में आपका स्वर्गवास हुआ। बड़ी उम्र लगभग 50 वर्ष की उम्र के बाद दीक्षा ली। कठोर साधुचर्या का वे पालन करते। वे किसी तरह का दोष नहीं लगाते। अपना काम स्वयं करते। ऐसे श्रवण को हम वन्दना करते हैं।
◆ मुमुक्षुओं के नेमीनाथ की आराधना से दीक्षा मुहुर्त मिलता शीघ्र
भगवान अरिष्टनेमि के बारे में बताते हुए गुरुवर ने कहा कि रिष्ट यानी चक्र और रिष्ट यानी अमंगल। अरिष्ट यानि अमंगल को दूर करने वाला। हर तीर्थंकर का जीवन से हमें शिक्षा मिलती है कि वे करुणा के भण्डार होते है। हर जीवन के प्रति उनके भावों में दया, करुणा, अपनत्व होता है। अपने जीवन के, ह्रदय के सारे अमंगल दूर करने के लिए नेमीनाथ भगवान का स्मरण करना चाहिए। मुमुक्षु भी प्रायः नेमीनाथ भगवान की आराधना साधना करते है और उनके आराधना से चारित्र का मुहूर्त शीघ्र आता है।
◆ शरीर, मन के साथ चेतना समावेश से राग में नहीं होता द्वेष का भाव
भगवान नेमीनाथ के जीवन चरित्र का वासन करते हुए कहा कि साता वेदनीय कर्म के कारण मनुष्य जन्म में राजभवन में रहे। भोगावली कर्म बाकी नहीं होने पर भी वे परिजनों के कहने पर मौन रह गए, विवाह के लिए तैयार हुए। विवाह की क्रिया भी आम जनता के लिए संदेश देने वाली हुई। राग तीन प्रकार के होते है- शरीर, मन और आत्मा। नेमीकुमार और राजुल के राग में शरीर और मन के साथ आत्मा का, चेतना का भी राग था, तभी पिछले नव भवों से उनका मिलन होता। मन और शरीर के राग को पूर्णता नहीं होने पर वह द्वेष में बदल जाती है, तभी तो हम सुनते हैं कि अमुक ने तेजाब डाल दिया, हत्या या आत्महत्या कर दी। चेतना का अगर राग नहीं होता तो राजुल के मन में नेमीकुमार के बारात से लोट जाने पर द्वेष पैदा हो सकता था, लेकिन उनका तो चेतना से जुड़ा अपनत्व था। तभी वे अपने कर्म को मान शांत हो गई और भगवान के तीर्थंकर बनने पर उनके पास दीक्षित हो गई।
◆ पशुओं की करुण पुकार पर की करुणा
गुरुवर भगवंत ने कहा कि नेमीकुमार जब बारात लेकर जा रहे थे तो बीच रास्ते में पशुओं को एक बाड़े में बंधा देखा और उनकी करुण पुकार सुनकर उनके मन में करुणा के भाव जागृत हुआ और सभी पशुओं को खोल दिया। और सभी को संदेश देते हुए स्वयं दीक्षा लेने के लिए चले गए। 300 वर्ष की उम्र में दीक्षा लेकर 54वें दिन केवलज्ञान को प्राप्त किया। हम आज परमात्मा नेमीनाथ को पावन स्मरण करते है।
समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती