‘दीपावली’ दीपों का त्यौहार है। कार्तिक अमावस्या की रात्रि में लोग अपने घरों की दीवारों पर, द्वारों पर, आंगनों में दीप-मालाएँ प्रज्ज्वलित कर ‘दीपावली’ मनाते हैं।
वैदिक-परम्परा में ‘दीपावली’ इसलिए मनाई जाती है कि इस दिन भगवान् श्री राम चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था।
जैन-परम्परा में ‘दीपावली’ इसलिए मनाई जाती है कि कार्तिक अमावस्या की रात्रि में भगवान् महावीर लोक-यात्रा सम्पन्न कर मोक्ष-रूपी शाश्वत घर में लौटे थे। देवों ने मणियों के, राजाओं ने स्वर्ण के तथा सामान्य-जनों ने मृत्तिका के दीप प्रज्ज्वलित कर तीर्थंकर महावीर की महान मोक्ष-यात्रा का अभिनन्दन किया था।
अन्य अनेेक परम्पराओं में भी ऐसे ही कुछ महाप्रसंग हैं, जिनके स्तवन-स्मरण हेतु दीपावली मनाई जाती है।
यहां एक क्षण ठहर कर थोड़ा मनन करें। हर वर्ष दीपावली मनाई जाती है, और दूसरे ही दिन विस्मृत कर दी जाती है। विनम्र निवेदन है – ऐसी दीपावली मनाई जाए जिसके दीप सदैव हमेें रोशन करते रहें। उसके लिए आवश्यक है कि ‘दीप’ हम अपने भीतर जलाएं जिससे हमारा हृदय, हमारी आत्मा, हमारा आचार और विचार आलोकित हो!
‘राम’ हमारे हृदय में प्रवेश लें तदर्थ हृदय को अयोध्या बनाएं। ‘महावीर’ की शिक्षा-सुवास को अपने चिन्तन औरअपने श्वासों में जीवित करें।
यह कैसे होगा?
यह ऐसे होगा – अपने भीतर के दुराग्रहों और मिथ्याग्रहों के अन्धकार को दूर करें। अवसाद को मिटाएं! अहं और क्रोध को शान्त करें। प्रदर्शन और आडम्बर पर रोक लगाएं! अपने कल्पित और भ्रमित परिवेश से – मिथ्याभिनिवेश से बाहर निकल कर देखें – और जानें! अभावों के अन्धकार में लिपटे-सिसकते जन-वर्ग के हृदय में प्रसन्नताओं के दीप जलाने का प्रयास करें।
इस ‘दीपावली’ पर्व पर अभाव में सद्भाव का एक दीप अवश्य जलाएं। पटाखे जलाने के लिए जो हजार रुपये व्यय करते हैं, उस राशि को किसी दीन-जरूरतमंद के पेट की भूख बुझाने में व्यय करें। निर्धन छात्रों की शिक्षा में कुछ अर्पित करें। अग्रिम पंक्ति के लोगों को सदैव भेंट-उपहार देते रहे हैं। इस बार यह भेंट-उपहार अंतिम पंक्ति में सिसक रही मानवता को अर्पित करें।
मैं सोचता हूँ कि – ऐसी दीपावली से हमारा हृदय-मंदिर रोशन हो उठेगा! आत्म-देव आनन्द से सराबोर हो जाएगा। भगवान् श्री राम की एवं प्रभु महावीर की स्मृति हमारे लिए अविस्मरणीय हो जाएगी।
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