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ऐसा तेज जो चुभने वाला नहीं, वह शांति देता है: डॉ ललित प्रभा जी

ऐसा तेज जो चुभने वाला नहीं, वह शांति देता है: डॉ ललित प्रभा जी

*सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद*

*कीर्ति- प्रताप-यश गौरव-राशि युक्तम्। सद्धर्म भास्वर प्रभाकर – तेजपुञ्जम् ।* *सम्पूर्ण चन्द्ररिव शीतल – शुभ्ररूपम् । सौभाग्य सद्गुरुवरं शिवदं स्मरामि ॥६॥*

श्री डॉ ललित प्रभा जी पूज्य गुरुदेव श्री सोभग्यमल जी महारसा के लिये कहते है कि..

गुरुरेव तेज के पूंज्य थे, वे प्रभात भी थे, भास्कर भी थे, भास्कर सूर्य को कहते है प्रभाकर चंद्र को कहते है। ऐसा तेज जो चुभने वाला नहीं,, वह शांति देता है। यह गुण जिसमें होते है उनमें दो विशेषता होती है।

 *आणाये चक्कु लोक विपस्सीय*

आयात के चक्षु- जिसकी आँखे बड़ी होती है, प्रभावीत करती है, विशाल आँखों वाला, कमल की पंखुडी वाला, बड़ा सुन्दर दिखता है यहाँ मतलब दीर्घ दृष्टि से देखते है, जीव दीर्घ दृष्टि से विचार करे ,,लोक की विचित्रता,, का विचार करे। में क्या कर रहा हूँ ?विचार करे, जीव की 9 तत्व का ज्ञान होना जरूरी है।

*मध्य, कषाय, विषय, निंदा विकथा* यह प्रमाद के भेद है। आलस शरीर से जुड़ा है। जो बातें आत्मा के काम की नहीं उनको सुन रहे है. यह प्रमाद। धर्म कथा के बीच बात करना यह प्रमाद । सुनते -सुनते शरीर की स्थिति बनती है ,,वह आलस ।

जो दीर्घ दृष्टि वाला होता है वह आगे की सोचता है। हम अपने जीवन में आगे की सोचकर कार्य करते हैं।

सदधर्म का विचार करो ,,हे क्या ? कौन सा धर्म ? जो धर्म पाप से दूर करे धर्म, बाहय धर्म, हिंसा से बचाये वह धर्म। सदधर्म आत्मा का हे, आत्मा का धर्म क्षमा व शांति। जो आत्मा में धर्म वह सदधर्म।

वह वाणी से , मन से, वचन से विचार करता है। किसी को सताने का विचार अच्छा है? खुद को संभलने का विचार करेंगे। दुसरे को सताना दुष्ट धर्म, खुद को संभालना सदधर्म, विचार करने के पहले विचार, यह कार्य मेरे लिये हितकारी के ,,नहीं। शब्द बोल रहा हूँ पुण्य कारी वचन होना चाहिए पाप का नहीं होना चाहिए। शरीर से जो क्रिया कर रहा हूँ वह मेरे लिये हितकारी है कि नहीं।

 श्री नेमिनाथ जी सोचते है कि इन जीवों का बलिदान मेरे निम्मित से होगा यह मेरे लिये हितकारी है कि नहीं।

जो आप कर रहे हो, रात को खीलाना, समय कैसा.. लोक की विचित्रता का विचार करो। आप जब बुलाओ तो अतिथि आते है

*अरथं अनर्थ भाव नित्यम* धन ही अनर्थ कारण है T आयोजक कर्म बांधते है। आपको क्या खीलाना.. यह आपका विषय हम यदि खायेंगे नहीं तो खीलाने वाला खिलायेंगे क्या ?

 राग भाव से कर्म बांध रहै हो, सचित की मनाहीं, कर्म तुम कठोर करने का प्रयास करते हो ! नरक में जाने का इंतजाम करते है! *जो खायगा माल वह खायेंगा मार*

तारीफ, निंदा कितने समय तक की ,,,*नई बात 9 दिन खीच तान 13 दिन*। उसके बाद भुल जायेंगे। भगवान कह गये मनुष्य भव दुर्लभ !

श्रेष्ठ काम भोगे तो नरक में चला गया। जो धर्म की आराधना करते है वह मोक्ष जाते है

कँहा जाना है?मोक्ष

जीवन देखो कार्य क्या हो रहे हे मोक्ष जाने के ? भवना से मोक्ष होता है,,पर कब, जब स्थिरता हो।

🔰तीर्थकर की शक्ति का परिचय की एक ऊंगली से मेरु पर्वत को हिला दिया। 64 इंद्र खडे, इनके सामने धरति की कोई शक्ति काम नहीं करती है। शैलेष पर्वत – पहाड़ो का राजा ।

भगवान के निर्वाण के पहले तीन योग स्थिर हो जाते है।पुद्गल कम्पित होते हैं आत्मा स्पंदनदनशील है क्यो? कर्म का संयोग है! अघाती कर्म छोड़ते है आत्मा स्थिर हो जाती है।

विचारों की स्थिरता के बिना मोक्ष नहीं होता मेरी आत्मा के लिये क्या हितकारी है। लोग हिंसा करते क्यों है? प्रशंसा पाने के लिये ! पैसा तुफान करता है। पैसा हजम करने की ताकत चाहिए

सारे पाप के रास्ते नये-नये ईज़ाद करते हो। शादी करके अच्छा किया। कि बुरा किया? जो अच्छा माने वह महापापी: दीर्घ द्रष्टा बनो, कब याद आता है जब पत्नी से बनती नहीं ,,पाप की क्रिया अच्छी मानते हो। शादी में जाना, अनुमोदना है कि नहीं ? खाली हाथ जाते हो के भरे हाथ जाते हे! चिंतन करो

व्यवहार में नय, निश्चय नय के लिये जरूरी है। निश्चय में चिंतन करो व्यवहार में पश्च्याताप करो । में बुरा कर रहा हुँ निश्चय से सोचो, राग से बच गये।

चारित्र जरूरी यथाख्यात चारित्र के बिना मोक्ष नहीं? व्यवहार कीया पक्का कीया, अन्दर से अलग हो जाओ *लोग विपस्सिय*- लोग कितना साथ देंगे! पाप कर रहा हु, जिसके लिये कर रहा हु वह क्या करेगा ,,तुम किसके लिये इकट्ठा कर रहे हो? क्यों पाप कर रहे हो! तुम किसका सोच रहे हो, लोक क्या काम आयागा, चोरी क्यों कर रहे हो! विश्वास घात क्यों कर रहे हो? चोरी का एक पैसा ‘नहीं रख सकते किसके लिये कर रहे हो ? चिंतन करो मजदुर मस्ती से खाता है,, किसमें जी रहे ।

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