दुर्ग विगत 72 वर्षों से लगातार दुर्ग शहर के अंदर आयबिल तप की अराधना चल रही है भादवा सुदी पूनम तेजी के दिन इसकी वर्षगांठ मनाई जाती है। आज जहां नंद मधुकर रतन धन बांधा तलाब दुर्ग में संत श्री रतन मुनि जी महाराज डॉ सतीश मुनि जी एवं विवेक मुनि जी कल्पज्ञसागर, हर्षित मुनि साध्वी प्रभा कवर जी के पावन प्रेरणा एवं सानिध्य में आज आयबिल तप की आराधना कराई गई। लगभग 225 श्रावक श्रावक-श्राविकाओं ने इस तप की तपस्या की
दुर्ग नगर की पुरानी प्रतिष्ठित फर्म रावत मल हनुतमल के वरिष्ठ सदस्य श्री प्रेम राज श्री श्रीमाल ने आयबिल तप को प्रारंभ किया था। आज उनसे परिवार से सदस्य इस तपस्या को निर्विघ्नं संपन्न करा रहे हैं।
क्या होता है आयबिल तप
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रसना इंद्रीय या जीव के स्वाद खो जीतना ही आई एम दिल सबका लक्ष होता है। अनिल तब के तहत 24 घंटे में एक बार सादा भोजन में खटाई मिठाई चिकनाई युक्त खाद्य एवं पेपर दारा त्याग होता है। इस तक में सुबला वह पकाया हुआ अनेक ही आसन में बैठकर खाया जाता है।
शक्कर घी ,मक्खन, मलाई, दूध, दही, व स्वादिष्ट भोजन का त्याग करना होता है कुछ लोग नमक के पानी का भी त्याग रखते हैं।
जैन धर्म में आयबिल का अपना विशिष्ट स्थान है। यह जैन धर्म का मोनापाली तप है बाकी के तप सभी धर्मों में होते हैं। लेकिन यह तप किसी और धर्म में नहीं होता इस तप को करने से शरीर स्वस्थ रहता है।
स्वाद विहीन खादय एवं पे पदार्थ ही इस तप का आहर है।
क्या-क्या खा सकते हैं इस आयबिल तप मे
बिना नमक की सुखी रोटी मुररा,मूंग ,पसिया का पानी, बेसन की रोटी,है चावल बिना नमक का, चावल की रोटी बिना नमक की इस तप का आहर हे।