*☀️प्रवचन वैभव☀️*
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6️⃣0️⃣
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296)
आत्म विस्मरण
आत्म घातक प्रवृत्ति है.!
297)
प्रायश्चित की
सिर्फ क्रिया करेंगे,
लेकिन विराधना के
भावो का प्रायश्चित
नही करेंगे तो
शल्यमुक्ति असंभव है.!
298)
तत्त्व स्वरूप में
स्थिर चित्त होना ही
जन्म की सफलता हैं.!
299)
जो पाप हो रहा है
वो मन से आनंद से
राग से हो रहा है और
धर्म सिर्फ काया से करना
ये कैसे चलेगा बताओ…?
300)
क्रिया कितनी भी
श्रेष्ठ शुद्ध विधिसंपन्न हो
लेकिन मन में मलिनता है तो
कोई सार नही है ऐसी क्रिया का.!
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*प्रवचन प्रवाहक:*
*सूरि जयन्तसेन चरणरज*
मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.
*🦚श्रुतार्थ वर्षावास 2024🦚*
श्रीमुनिसुव्रतस्वामी नवग्रह जैनसंघ
@ कोंडीतोप, चेन्नई महानगर