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ज्ञान वाणी

आत्मयुद्ध है सबसे बड़ा युद्ध:  संयमरत्न विजयजी

आत्मयुद्ध है सबसे बड़ा युद्ध:  संयमरत्न विजयजी

मुनिद्वय का आचार्यद्वय से हुआ आध्यात्मिक मिलन

युगप्रभावकाचार्य श्रीमद् विजय जयन्तसेनसूरिजी के सुशिष्य मुनि श्री संयमरत्न विजयजी, मुनि श्री भुवनरत्न विजयजी ने विजयवाडा के कौस्तुभा निवास से विहार करके विजयवाडा के आराधना भवन में विराजित आचार्य अजितशेखरसूरिजी व आचार्य विमलबोधिसूरिजी के दर्शन-वंदन करने हेतु पधारे।

आचार्यद्वय श्री ने मुनिद्वय श्री से आध्यात्मिक चर्चा करते हुए शिखरजी यात्रा की शुभकामनाएं प्रेषित की,तो मुनिद्वय श्री ने आचार्य श्री के सान्निध्य में होने वाली प्रतिष्ठांजनशलाका की मंगल भावना अर्पित की।मुनि श्री ने आचार्य श्री को अपना साहित्य भी प्रदान किया।

पूर्व कौस्तुभा निवास में प्रवचन देते हुए मुनिद्वय ने कहा कि आत्मा को आत्मा के द्वारा ही जीतकर मनुष्य सुख पाता है।मोह का पूर्ण रूप से नष्ट करने हेतु या वीरागता को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अपनी आत्मा के साथ,कर्म शरीर के साथ,अपनी इंद्रियों के साथ,अपने मन के साथ, अपने विकारों के साथ और अपने भावों के साथ युद्ध करना होगा।

इस आत्मयुद्ध के लिए भेद विज्ञान रूपी शस्त्र को काम में लेना होगा।यह आत्मयुद्ध ही सबसे बड़ा युद्ध है।

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