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आचार-सूत्र का पुनरावर्तन अवश्य करें: आचार्य मुक्तिप्रभ सूरी

आचार-सूत्र का पुनरावर्तन अवश्य करें: आचार्य मुक्तिप्रभ सूरी

चेन्नई. रायपुरम स्थित सुमतिनाथ जैन भवन में विराजित आचार्य मुक्तिप्रभ सूरी के सान्निध्य में आचार्य विनीतप्रभ सूरी ने कहा पर्यूषण पर्व के पांचवें दिन से चार दिन कल्पसूत्र गं्रथ का वाचन होता है। कल्प का अर्थ होता है आचार।

मुख्यतया साधुओं के आचारों का निर्देश इसी ग्रंथ में है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर पर्यन्त के मुनियों की आचार विधि इसी ग्रंथ में है। प्रथम तीर्थंकर के समय के साधु सरल व जड़बुद्धि थे। बीच के तीर्थंकरों के समय के साधु सरल व प्राज्ञ पुरुष हुआ करते थे तथा अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के साधु वक्र व जड़ प्रकृति के होते थे।

वे हर बात पर उग्र हो जाते थे और अपना दोष कबूल नहीं करते थे। प्रथम और अंतिम अरिहंत के तीर्थ शासन में वर्षा हो या न हो, पर्यूषण-चातुर्मास के साथ ही आचार-सूत्र का पुनरावर्तन अवश्य करना चाहिए।

भगवान महावीर के शासन में यह मंगलभूत है कि कल्पसूत्र मेें तीर्थंकर चारित्र, गणधरों के चारित्र एवं साधुओं की समाचारी है। आचार्य ने कहा प्रभु महावीर की सातवीं पाट परंपरा में अंतिम चौदह पूर्वधर महर्षि भद्रबाहु स्वामी हुए हैं जिन्होंने नौवें पूर्व (प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व) में से उद्धरण करके दशाश्रुत स्कंध के आठवें अध्याय के रूप में इस कल्पसूत्र की रचना की है।

भगवान महावीर के निर्वाण के 980 वर्ष बीतने पर आनंदपुर नगर में पुत्र-मरण से शोकातुर बने ध्रुवसेन राजा की समाधि के लिए प्रथम बार चतुर्विध संघ के सामने इस कल्पसूत्र का वाचन शुरू हुआ।

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