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आचार्य श्री भिक्षु के 218वें चरमोत्सव पर भावभीनी अभिवन्दना

इतिहास उसी का बनता है, जो कुछ क्रांतिकारी कार्य कर स्वकल्याण के साथ परकल्याण में योगभूत बनते हैं। आचार्य भिक्षु ऐसे ही क्रांतिकारी लौह पुरुष थे।

सत्य के महान उपासक थे। उन्हीं की वाणी “आत्मा रा कारज सारस्यां, मर पूरा देस्यां” – सत्य के प्रति प्रगाढ़़ समर्पण की सूचक हैं। वे महान आत्मबली और अतुल साहसी थे।

उन्होंने अपने संघर्षमय जीवन में कठोर साधना, तपस्या, शास्त्रों का गंभीर अध्ययन और संघ की भावी रूपरेखा का चिंतन किया। अपने मौलिक चिंतन के आधार पर नए मूल्यों की स्थापना की।

आज तेरापंथ धर्म संघ अनुशासित मर्यादित और व्यवस्थित धर्मसंघ हैं, इसका पूर्ण श्रेय आचार्य भिक्षु की लिखी मर्यादाओं को हैं। आए!

हम श्रद्धा के साथ उस महान् सजृनवादी आत्मा के बताएं पद् चिन्हों पर चलकर अपनी लक्षित मंजिल वीतरागता की ओर चरणन्यास करें।             स्वरूप चन्द दाँती              बालोतरा, चेन्नई

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