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ज्ञान वाणी

अहिंसा में अपना बनाने की ताकत है

अहिंसा में अपना बनाने की ताकत है

चेन्नई. अहिंसा में ताकत है अपना बनाने की। हिंसा में कायरता है दूसरों को मिटाने की। हिंसा के पास शस्त्र है।

कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा गांधीजी का देश की स्वतंत्रता में बहुत बड़ा योगदान है। गांधीजी के तीन बंदरों को प्रतीक क्यों माना। सिंह भी बंदरों से डरता है और उनके मन में दूसरी जाति के लिए दया भावना होती है। वे हमेशा ही सकारात्मक रहे, अच्छा सोचा, अच्छा किया, अच्छा बोला। अहिंसक आदमी की सोच नकारात्मक नहीं हो सकती।

अहिंसा, अपरिग्रह, सकारात्मक विचार उनके अंगरक्षक थे। उनका मैनेजमेंट बहुत अच्छा था। गांधीजी के दो वस्त्र, दो उद्देश्य और तीन विचार थे। परिग्रह कम अहिंसा ज्यादा। सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र और सद्व्यवहार, सदाचरण का पालन करना। पहले पिता देश की सुरक्षा के लिए बेटे के हाथ में शस्त्र सौंपता था जबकि आज पिता राजनीति सौंपता है। आदमी पद, पैसा, प्रतिष्ठा के लिए पागल हो गया है।

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