चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा अहंकार से बढक़र कोई पाप नहीं है और रहम से बढक़र कोई पुण्य नहीं है। अहंकार और पेट बढ़ जाए तो आदमी चाहकर भी किसी को गले नहीं लगा सकता।
अहंकार ऐसी दौड़ है जिसमें आदमी जीतकर भी हार जाता है। भरत चक्रवर्ती को बाहुबली के सामने झुकना पड़ा। रावण के विनाश का कारण अहंकार था। जब भी कोई राजनेता हारता है तो हार का कारण अहंकार ही बनता है।
कौरवों का हश्र, रावण का पतन, घर का बंटवारा, परस्पर युद्ध का कारण अंहकार है। ये शतरंज के खेल के समान है। खेल बंद होने के बाद राजा, वजीर और सभी प्यादों को एक ही डिब्बे में बंद कर दिया जाता है। अहंकार से भरे लोगों का जन्म पत्थर की योनि में होता है।
छेनी हथौड़े की मार खानी पड़ती है। हाथी का जन्म मिलता है कभी ऊंची नाक कर के चलता है अब सूंड लटकाकर चलता है और उसी सूंड से अपने ऊपर धूल डालता है। अहंकार का अर्थ है अपने सद्गुणों पर धूल डालना। रॉकेट जितनी गति से आकाश में उड़ता है उतनी ही गति से समुद्र में गिरता है।
माचिस दीयों को जलाने के चक्कर में खुद को जलाती है और दीया दूसरों को प्रकाश देता है। कांच के भवन को टूटने में देर भले ही लगती हो पर टूटता जरूर है। अहंकार यानी यश की उम्र पुण्याश्रित है। जो कभी भी समाप्त हो सकता है। घर परिवार और कुटुम्ब को बचाना चाहते हो तो अहंकार से बचो।