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ज्ञान वाणी

अमृतमय जिनवाणी की वर्षा: वीरेन्द्र मुनि

अमृतमय जिनवाणी की वर्षा: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता बह रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आर्य सुधर्मा स्वामी जंबू स्वामी के पूछने पर फरमा रहे थे कि भगवान महावीर स्वामी सर्वश्रेष्ठ थे उनकी गुण गाथा गाते हुवे वीर स्तुति की रचना हुई इस वीर स्तुति की 20 वीं गाथा में तिर्च्छालोक में असंख्याता द्विप समुद्र है उसमें सबसे आखिर में सबसे बड़ा विस्तार वाला स्वयंभुरमण समुद्र कहा गया है , जहां पर देवता आकर के क्रीड़ा करते हैं।

जिस तरह देवगण नंदन वन में जाकर आमोद प्रमोद करते हैं , वैसे ही स्वयंभुरमण समुद्र पर अपने चित्त ( मन ) को प्रसन्न करते हैं इसलिये स्वयंभूरमण नामक समुद्र सभी समुद्रों में मुख्य कहलाता है , उसी प्रकार भगवान भी संसार के समस्त जीवों कोसाता पहुंचाने का कार्य करते हैं। जो आत्मा भगवान की वाणी को जीवन में उतार लेते हैं वे सुखी हो जाते हैं , इसलिये भगवान को सर्वोत्तम कहा गया है जिस तरह 10 भवन पतियों में नाग कुमार दूसरे नंबर के देव कहलाते हैं , इन देवों के एक इंद्र है उनका नाम धरणेन्द्र है , 23 वे तीर्थंकर पारसनाथ भगवान ने जलते हुए नाग नागिनी को अंतिम समय में नवकार महामंत्र सुनाया जिससे नाग जाति के देवों के इंद्र और पद्मावती देवी बनी कमठ तापस मर करके मेघमाली देव बना ,कमठ तापस ने बाल तप किया था।

ज्ञान के साथ तप करता तो उच्च जाति का देव बनता पार्श्व कुमार ने लकड़े में नाग का जोड़ा जल रहा यह बताने से कमठ भड़क गया और उसने पार्श्वकुमार से वैर भाव बांध लिया , पार्श्वकुमार बोले – इस प्रकार का अज्ञान तप करने से आत्मा को सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती – यह पाखंडियों का काम है धर्म के नाम पर लोगों पागल बनाना , आज हम देखते हैं जो धोखा देने वाला धर्म के नाम पर लूटने वाला ज्योतिष के नाम पर ठगाई करने वाले बहुत मिल जाएंगे पर सच्चा धर्म का मार्ग बताने वाले कम है आज समाज की स्थिति देखने पर मालूम पड़ता है कि – आज दो प्रकार के साधु साध्वियों का जोर चलता है ( 1 ) जिसका प्रवचन जोरदार प्रभावशाली हो वह और ( 2 ) जो यंत्र मंत्र तंत्र जन्मपत्री आदि ज्योतिष ज्ञान हो उनकी ही पूछ होती है उनसे मिलने के लिये लाइन लगी रहती है उनसे मिलने के चोरी छिपे पिछले दरवाजे से अंदर पहुंच जाते हैं ऐसे ही कमठ तापस के वहां धूम मची हुई थी परंतु कमठ के पाखण्डी पने का भंडाफोड़ हो जाने से वह क्रोधित हो गया औए मेघमाली देव बन करके उसने भगवान पर मूसलाधार बरसात बरसाई।

भगवान पारसनाथ पानी में नाक तक पानी आगया था उस समय धरणेंद्र पद्मावती ने भगवान के चरणों के नीचे अपने शरीर को कुंडली के रूप में करके भगवान को ऊपर उठा लिया , और अपने फनों को फैलाकर शिरपर छत्र का रूप धारण कर लिया था इतना सब कुछ हुआ पर भगवान ध्यान से विचलित नहीं हुवे, इंद्र ने मेघमाली को फटकारते हुए कहा कि जो तीर्थंकर भगवान है उनकी अवज्ञा और आशातना कर रहे हो तो कौन से भव में छुटोंगे जिससे मेघमाली को बोध हुआ सही मार्ग पर आया धरणेन्द्र देव सभी देवों में श्रेष्ठ देव कहलाते हैं इसी प्रकार इक्षुरसोदक समुद्र को श्रेष्ठ मानने में आया है।

अथवा इक्षु ( गन्ने ) का रस जिस प्रकार मधुर और शांति देने वाला और स्वादिस्ट होता है गन्ने का जूस भूख प्यास को मिटाकर तृप्ति देता है वैसे ही तपस्या के द्वारा संसार की तीनों काल की अवस्था को जानने वाले उग्र तपस्वी श्रमण भगवान महावीर स्वामी इस जगत में ध्वजा के समान थे सर्वश्रेष्ठ थे अनेक गुणों से सुशोभित थे , मुनि ने कहा हमें अपने गुरु का धर्म का नाम का पट्टा गले में लगाना चाहिये जिस प्रकार कुत्ते के गले में पट्टा होता है तो वह आनंद में रह सकता है , क्योंकि उसके सारी चिंता मालिक को रहती है बीमार है तो दवाई वगैरा का ध्यान मालिक ही तो रखेगा, जिसके गले में पट्टा नहीं वह कुत्ता दर दर की ठोकरे खाएगा इसी प्रकार हमारे गले में देव गुरु और धर्म का पट्टा लगा होगा तो हमारी आत्मा कहीं भी ठोकरे नहीं खायेगी और आत्मा का कल्याण जल्दी हो जाएगा और जिसके गले में पट्टा नहीं होगा वह आत्मा दर दर की ठोकरें खायेगी।

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