सेलम. वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ सेलम के तत्वावधान में वीरेन्द्रमुनि ने सेलम शंकर नगर स्थित जैन स्थानक में चातुर्मासिक प्रवचन में सुख विपाक सूत्र के माध्यम से श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा गाढ़ बंधन में बांधना, निर्दयता पूर्वक प्रहार करना, चमड़ी का एवं अंगोपांग का छेदन-भेदन करना,किसी भी प्राणी पर शक्ति से ज्यादा वजन उठाने को कहना, अपने आश्रित पशु व मनुष्य को खाने-पीने पर प्रतिबंध लगाना यह सब पाप कर्म के बंध बांधना है। अगर हमें सुख चाहिए तो इन जीवों को हम सुख दें।
12 घड़ी तक बैल भूखे प्यासे रहे तो पहले तीर्थंकर ऋषभदेव भगवान के अंतराय बंध गई जिससे तेरह मास और 10 दिन तक आहार पानी नहीं मिला। श्रीकृष्ण वासुदेव के पुत्र ढंढण मुनि जिन्होंने भगवान अरिष्टनेमि के पास दीक्षा ली परंतु पूर्व भव में अंतराय कर्मों का बंधन किया था जिससे उन्हें आहार, पानी नहीं मिलता था, भगवान से उन्होंने प्रतिज्ञा ली थी कि मेरी लब्धि से आहार मिलेगा तो आहार करूंगा।
एक दिन आहार लेने के लिए द्वारिका नगरी पहुंचे। उस समय श्रीकृष्ण वासुदेव की सवारी आ रही थी श्रीकृष्ण ने जैसे ही मुनि को देखा तो हाथी से नीचे उतर आए और विधि पूर्वक वंदना स्तुति की। यह देख कर एक गृहस्थ ने सोचा यह महाराज कोई पहुंचे हुए लगते हैं, तभी तो श्री कृष्ण इनको वंदना नमस्कार कर रहे हैं।
इनको मैं अपने घर लाकर कुछ दूं जिससे मुझे लाभ होगा। ऐसा सोचकर मुनि से प्रार्थना की कि भगवन मेरे घर आंगन को पावन करिए और मुझसे भोजन ग्रहण कीजिए। ढंढण मुनि ने उनके हाथ से आहार लिया और चले गए।
ढंढण मुनि तीर्थंकर भगवान अरिष्टनेमिनाथ के पास पहुंचे और कहा भगवान आज मेरी अंतराय टूटी है। मुझे आहार में मिष्ठान प्राप्त हुआ है। भगवान ने कहा ढंढण मुनि यह आहार तुम्हारी लब्धि का नहीं है यह तो श्रीकृष्ण की लब्धि का है, श्रीकृष्ण ने तुम्हें वंदन नमस्कार किया जिससे प्रभावित होकर के उस व्यक्ति ने मिष्ठान बेहराया है। यह सुनकर ढंढण मुनि ने सोचा मेरे कर्म कितने जबरदस्त बंधे हैं जिससे आहार भी नहीं मिलता, मेरे साथ चलने वाले अन्य मुनिगण को भी आहार नहीं मिलता।
भगवान की आज्ञा लेकर वे जलाशय के किनारे रेती में बैठकर पात्र में रेती (मिट्टी) डालकर के मिष्ठान को मिलाते हुए अपने पूर्व जनित कर्मांे को कोसने लगे। मिष्ठान को मिलाते मिलाते उनके सारे कर्म नष्ट हो गए और वहीं पर केवल ज्ञान केवल दर्शन हो गया।
इसलिए भगवान महावीर स्वामी कहतेे हैं कि जो व्यक्ति नौकर-चाकर, पशु के खाने-पीने पर रोक लगाते हैं तो वे कर्मों का बध्ंान कर लेते हैं और जब वे उदय काल में आते हैं तब रो-रोकर के पूरे करने पड़ते हैं।
ढंढण मुनि को भगवान ने बताया था पूर्व भव में धनाड्य परिवार से थे 500 हल चल रहे थे, उस समय वे कहते थे एक चक्कर और चला लो, इस प्रकार उन्होंने मनुष्यों को, पशुओं को एक-एक चक्कर और लगा लो फिर खाना-पीना करने कहा जिससे उन्होंने कर्मों का बंधन किया और इसके कारण उन्हें भूखे रहना पड़ा।