कुत्तालम, नागापत्तिनम (तमिलनाडु): सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति जैसे जीवनोपयोगी सूत्रों द्वारा जन-जन को सन्मार्ग दिखाने, लोगों के भीतर सूख रही मानवता को बीजों का अभिसिंचन करने के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य, शांतिदूत, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के निरंतर गतिमान हैं।
वर्तमान में आचार्यश्री अपनी अहिंसा यात्रा के साथ दक्षिण भारत की धरती विहरणमान हैं। अहिंसा यात्रा अपने प्रणेता संग तमिलनाडु राज्य के नागापत्तिनम जिले के लोगों को अपने तीन प्रमुख उद्देश्यों से अवगत करा रही है।
आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगलवाणी से पावन बोध प्राप्त कर अनेक तमिलवासी अहिंसा यात्रा के संकल्पों को स्वीकार भी कर रहे हैं और उन्हें अंगीकार भी करने का प्रयास कर रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों से गुजरती अहिंसा यात्रा अनजान लोगों के लिए आश्चर्य का कारण बनी हुई थी, किन्तु उन्हें जैसे ही अहिंसा यात्रा और आचार्यश्री के बारे में जानकारी प्राप्त हो रही थी, वे तत्काल आचार्यश्री के समक्ष उपस्थित होकर पावन आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे।
आचार्यश्री लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर कुत्तालम गांव स्थित राज विद्यालय के प्रांगण में पधारे।
बारह भावनाओं में अनित्य अनुप्रेक्षा की बात बताई गई है। इसके द्वारा मोह-मूर्छा को कम करने का प्रयास किया जा सकता है।
ऐश्वर्य, सत्ता, प्रभुत्व कुछ भी स्थाई नहीं। धन भी नित्य नहीं है, स्वर्ण भी स्थाई नहीं, राजा से प्राप्त हुई चीजें भी स्थाई नहीं, देवताओं का सुख भी स्थाई नहीं। रूप, स्वास्थ्य, जीवन कुछ भी स्थाई नहीं। सबका संयोग है और जिसका संयोग होता है, उसका वियोग सुनिश्चित है। संसार की सारी स्थितियां अनित्य हैं।
मोह की चेतना संसार है। आदमी अमोह की साधना के द्वारा मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। इसके लिए आदमी को अनित्यता का चिंतन करना चाहिए। अनित्यता के चिंतन से मोह को कम किया जा सकता है।