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ज्ञान वाणी

अध्यात्म के क्षेत्र में बनें प्रवर्धमान: आचार्यश्री महाश्रमण

अध्यात्म के क्षेत्र में बनें प्रवर्धमान:  आचार्यश्री महाश्रमण

तिरुपुर. आचार्यश्री महाश्रमण की मंगल सन्निधि में वर्धमान महोत्सव के त्रिदिवसीय कार्यक्रम शुक्रवार को आरंभ हुआ।

कार्यक्रम में आचार्य के आगमन से पूर्व तेरापंथ धर्मसंघ की साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा की उपस्थिति में साध्वी वैभवयशा, समणी पुण्यप्रज्ञा, साध्वी मैत्रीयशा व समणी प्रणवप्रज्ञा ने गीतों का संगान किया गया।

आचार्य के आगमन पर पूरा वातावरण जयनादों से गूंज उठा। आचार्य के आने के बाद समणीवृंद ने समूह रूप में गीत का संगान किया। साध्वीवर्या संबुद्धयशा ने लोगों को संबोधित किया।

आचार्य ने वर्धमान महोत्सव के प्रथम दिवस पर संबोधित किया कि आदमी को जीवन में वर्धमान रहना चाहिए, निरंतर विकास करते रहना चाहिए। विकास भौतिकता की दिशा में होता है तो आध्यात्मिकता के दिशा में भी विकास होता है। दुनिया के लिए दोनों क्षेत्रों में विकास अपेक्षित होता है।

गृहस्थों के भौतिकता के दिशा में भी वर्धमान हो सकते हैं तो आध्यात्मिकता के दिशा में भी वर्धमान हो सकता है। आज वर्धमान महोत्सव का शुभारम्भ हो रहा है। इसके अनेक मायने हैं। इस महोत्सव का नाम भगवान महावीर के नाम से जुड़ा हुआ है। मानो वह जिह्वा धन्य होती है, जिससे परम पवित्र आत्मा का नाम लिया जाता है।

उन्होंने कहा मर्यादा महोत्सव से पहले गुरुकुलवास में साधु, साध्वियों, समण श्रेणी की संख्या वृद्धि भी होती है, इसलिए वर्धमान महोत्सव का आयोजन किया जाता है। संख्या वृद्धि होना अच्छी बात है, लेकिन इसके साथ-साथ आदमी के भीतर गुणवत्ता की भी वृद्धि हो, वर्धमानता हो, साधु-साध्वियों की गुणवत्ता में वर्धमानता हो, ऐसा प्रयास होना चाहिए। जीवन में गुणवत्ता न हो तो जीवन निष्प्राण सा हो जाता है। जीवन में गुणवत्ता हो तो प्राणवत्ता बनी रहती है। जीवन में वर्धमान बने रहने के लिए ज्ञान का निरंतर विकास करने का प्रयास करना चाहिए।

प्रवचन के पश्चात आचार्य ने उपस्थित साधु, साध्वियों व समणश्रेणी से चाय पीने के संदर्भ में पूछा तो अनेकों साधु, साध्वी और समणीवृंद द्वारा आजीवन के लिए चाय-कॉफी का त्याग किया गया। तेरापंथ कन्या मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। तिरुपुर तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष अनीता बरडिय़ा, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष जयसिंह कोठारी, जीतमल जैन व उपासिका संजू दूगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी तो वहीं पुष्पादेवी ने गीत का संगान किया। मुनि कुमुदकुमार ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।

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