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अणुव्रतों को धारण करने वाला श्रावक कहलाता है: जयतिलक मुनिजी

अणुव्रतों को धारण करने वाला श्रावक कहलाता है: जयतिलक मुनिजी

नार्थ टाउन के ए यम के यम स्थानक में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया श्रावक का मतलब, श्रा = यानि श्रवण करने वाला, व – विनयपूर्वक, क- यानि प्रवृत्ति करना। जो श्रावक अणुव्रतों को धारण करने वाला श्रावक कहलाता है उसका जीवन नैतिकता से पूर्ण होता है उसकी हर प्रवृत्ति में धर्म झलकता है कर्म के भार से आत्मा जैसे जैसे हल्की होगी तो ऊपर उठती है कर्म से रहित हो जायेगी तो अग्र भाग पर स्थित हो जायेगी जब अच्छी भावना आयेगी तो व्रतों को धारण करने की इच्छा जागेगी।

व्रत प्रत्यखान बन्धन नहीं है मुक्त होने का मार्ग है जीवन सुगमता से जीने का मार्ग प्रशस्त करती है आत्मा नन्दन की तरह सुखों से परिपूर्ण हो जायेगी।

दूसरे व्रत के पांच अतिचार है तीसरा अतिचार यानि किसी को जान बूझकर झुठा कलंक नहीं लगाना। जैसे अंजना सती। बिना सच जाने किसी पर झुठा आरोप लगा देते हे तो कर्मों का बन्ध होता है जैसे बीज बोते है वैसा फल मिलता है। चौथा अतिचार है मोसोवयसे -ऐसा उपदेश देना कि जिसमे कषाय की वृद्धि हो, आरम्भ-समारम्भ बढ़े विषय वासना उत्तेजित हो, ऐसी सलाह नहीं देना जिससे घोर पापों का बन्ध होता है। जीव विराधना की सलाह किसी को नहीं देना कि जिससे अनन्त संसार बढ़ जाता है व्रत भंग करने की सलाह नहीं देना। ऐसा करना की जिससे व्रत भी भंग न हो और काम हो जाये। हैं नकली नोट बनाना, ऐसी

प्रवृत्ति नहीं करना। जिससे दूसरे व्रत में दोष लगे । संचालन करते हुए ज्ञानचंद कोठारी ने जयमल जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित जय जाप के लाभार्थी सुरेश बबीता बैद परिवार व एकासन तप के लाभार्थी कमलाकुमारी पारसमल बोहरा परिवार को धन्यवाद ज्ञापन किया।

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