चेन्नई. पेरम्बूर जैन स्थानक में विराजित समकित मुनि ने कहा शास्त्रकारों ने दो प्रकार का मरण बताया है-अकाम मरण व सकाम मरण। जो रोते-रोते मरता है वह अकाम मरण और हंसते हुए जीवन छोड़ता है वह सकाम मरण होता है। यह दुनिया किसी का साथ नहीं देती, इस दुनिया ने राम, कृष्ण एवं महावीर का ही साथ नहीं दिया तो तुम इस दुनिया पर भरोसा क्यों करते हो। जो दुनिया के साथ जीता है उसे भविष्य में मार खाने से कोई बचा नहीं सकता और जो भगवान के साथ जीता है उसे भविष्य में मार खानी नहीं पड़ती।
वे रिश्ते महासौभाग्यशाली होते हैं जहां वासना से साधना और मोह से धर्म का जन्म होता है। कब मरना है यह पता नहीं लेकिन कैसे यानी रोते-रोते या हंसते-हंसते मरना है यह हमारे हाथ में है। जीवन जीने के दो तरीके हैं-चैतन्य बनकर जीना और जड़ बनकर जीना। चैतन्य बनकर जीने वाले चकोर होते हैं उनको जीवन नजर आता है जबकि जो जड़ बनकर जीते हैं वे गिद्ध होते हैं, उनको सिर्फ मुर्दे ही नजर आते हैं। चैतन्य की मौत में मोक्ष एवं मुर्दे की मौत में संसार सागर छिपा है।