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ज्ञान वाणी

हमारी आत्मा स्वयं कर्म उपार्जन करती है: विमलमुनिजी

हमारी आत्मा स्वयं कर्म उपार्जन करती है: विमलमुनिजी

एस .एस . जैन संघ ऊटी के जैन स्थानक में जैन दिवाकर श्री चौथमलजी म सा के प्रपौत्र शिष्य एवं तरुण तपस्वी श्री विमलमुनिजी म सा के सुशिष्य वीरेन्द्रमुनिजी महाराज ने आज धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमारी आत्मा स्वयं कर्म उपार्जन करती है , और स्वयं ही भुगतती है कहा भी है – स्व कर्म करोती आत्मा तत्फल भुगतती है।

आत्मा यही कह रहे संत महात्मा कभी न दुःख देते परमात्मा !! मनुष्य धन-संपत्ति कमाता बाग बंगले बनाता है तब कहता है ये सब मैंने कमाया है बनाया है और अगर नुकशान हो जाये तो भगवान के शिर दोष देता है हे भगवान यह क्या कर दिया बेटे बेटी को पढ़ाकर के होशियार कर दिया शादी की अच्छे परिवार मिले तो कहता हैं ये सब मेरी होशियारी से किया है हर समय में मैं – मैं करता है – परंतु बेटे बेटी की मृत्यु हो जाये तो कहता है।

हे भगवान यह क्या कर दिया नुकशान होने पर मृत्यु होने पर यह नहीं कहता कि मेरे कारण हुआ – जरा सोचें भगवान तो वीतरागी है , उन्हें किसी से लेना देना नहीं भगवान किसी की हानि यां किसी को भी मारते नहीं है भगवान तो राग द्वेष के विजेता है जो कुछ भी होता है अपने स्वयं के कर्म के उदय आने से सुख दुःख लाभ हानि आदि होता है।

भगवान तो सिद्ध हो गये मोक्ष में है उनके शरीर ही नहीं है तो वो कहां से आयेंगे तुम्हें तकलीफ देने के लिये मुनिश्री ने भगवान महावीर स्वामी की बातें बता कर समझाया कि कर्म करने के पहले सोचे बिना सोचे समझे कोई भी कार्य न करें जिससे हमारे कर्मों का बंधन नहीं हो और जल्दी ही हमारी आत्मा को मुक्ति मिल सकती है।

जैसे चोर चोरी करते हुए पकड़ा जाता है तब उसकी क्या दशा होती है , वैसे ही हमारी आत्मा कर्म तो हंसते-हंसते बांध लेते हैं परंतु जब उदय काल में रो-रो करके कर्म भुगतने पड़ते हैं।

मुनिश्री करीब 35 साल के पश्चात ऊटी में पधारे हैं ज्यादा से ज्यादा दर्शन प्रवचन का लाभ लेवे।

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