माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने कहा कि जो तत्व जैसा है उसे यथार्थ रूप में प्रस्तुत करना उस पर श्रद्धा करना उसका सम्यक होता है। आदमी की आत्मा अनादि काल से भ्रमण कर रही है। भगवान महावीर की आत्मा भी अनादि काल से भ्रमण करने के उपरान्त मोक्ष को प्राप्त हो चुकी है। इस प्रकार एक प्रकार से कहा जा सकता है कि प्रत्येक आत्मा कभी न कभी मिथ्यादृष्टि ही थे।
‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्राÓ के विशेष सम्बोधन में आचार्य ने भगवान महावीर के प्रथम भव नयसार के जीवन का वर्णन करते हुए उनका साधुओं से मिलना और साधुओं को आहार करवाने, साधुओं द्वारा नयसार को उपदेश देने और उसके बाद नयसार को सम्यकत्व की प्राप्ति तथा मृत्यु के उपरान्त प्रथम देवलोक में जाने की घटना सहित भगवान महावीर की आत्मा के दूसरे जन्म भगवान ऋषभ के कुल में भरत के पुत्र मरिचि के रूप में पैदा होने के प्रसंगों की आचार्य ने बहुत ही रोचक ढंग से व्याख्या की।
स्वाध्याय दिवस पर आचार्य ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि साधुओं को आगम का स्वाध्याय करने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थों को भी पच्चीस बोल, श्रावक प्रतिक्रमण, अर्हत् वन्दना को कंठस्थ करने का प्रयास करना चाहिए। प्रतिदिन प्रवचन श्रवण करना भी स्वाध्याय होता है।
स्वाध्याय ज्ञानार्जन का उपाय होता है। इसलिए स्वाध्याय करने का प्रयास करना चाहिए। चतुर्दशी तिथि होने के कारण आचार्य हाजारी का वाचन करते हुए साधु-साध्वियों को पावन प्रेरणा भी प्रदान की तो वहीं उपस्थित साधु-साध्वियों ने लेखपत्र उच्चरित किया। कार्यक्रम में मुख्यमुनि ने ‘नर क्षमा धर्म धारोÓ गीत का संगान किया।