चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा प्रभु अरिष्टनेमि राजीमती और रथनेमि का जीवन प्रसंग सभी के लिए प्रेरणास्पद है। प्रभु पशुओं की चीत्कार सुनकर भोग मार्ग से त्याग तथा असंयम से संयम पथ की ओर मुड़ गए।
असंयम चार कारणों से उत्पन्न होता है। अज्ञान यानी अपने आप के स्वरूप को न जानना। आसक्ति यानी जो अपना नहीं है उसे अपना मानना। अंधानुकरण यानी जो दूसरे कर रहे हैं वे चाहे बुरा भी क्यों न हो उसकी देखा-देखी करना है और यह मानना कि उसकी जो गति है वही मेरी होगी।
अविवेक यानी जिनका विवेक सोया हुआ रहता है उसका जीवन असंयम के मार्ग पर गति से बढ़ता है। असंयमी का जीवन विलासिता और मौज मस्ती का होता है। उनका दृष्टिकोण होता है खाओ होटल में, रहो हॉस्टल में और पहुंचो हॉस्पिटल में। आखिर मरकर जाओ हेल यानी नरक में। जीवन में आवश्यकताओं की पूर्ति संभव है लेकिन इच्छाओं की पूर्ति कभी नहीं हो सकती।