चेन्नई. शुक्रवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज के सानिध्य में संवत्सरी पर्व के क्षमापना दिवस पर उपस्थित जन मैदिनी को प्रवचन में कहा कि परमात्मा ने दो प्रकार के धर्म दिए हैं। एक आत्म साधना और दूसरा संबंध साधना का। परमात्मा ने अध्यात्म को जितनी महत्ता दी उतनी ही आपसी संबंधों को दी है। जिसके संबंधों और रिश्तों में श्रद्धा, मैत्री और पवित्रता नहीं है वह अध्यात्म की साधना नहीं कर सकता, इतना ऊंचा विधान परमात्मा ने दिया है। तीर्थंकर परमात्मा ने कहा है कि तुम्हारी अध्यात्म की कसौटी है कि तुम रिश्तों को कितनी आत्मीयता से जीते हो और रिश्तों की कसौटी है कि तुम अध्यात्म में कितने उतरते हो।
न जाने कितनी बार न चाहते हुए भी मात्र गुरु के साथ ही नहीं, संसार के अनेकों जीवों को हम अपने माया, अहंकार और क्रोध की आग में जला देते हैं, अपने निकट संबंधियों के साथ हम ज्यादा विराधना करते हैं। आज के इस पावन पर्व पर जब-जब अहंकार के कांटे, माया की गंदगी और लोभ का जहर डाला है हमने उन पर डाला है, उसे गहराई से देखते हुए इस विराधना के लिए उन सभी से क्षमा मांगे। यदि उन्होंने भी कोई ऐसा व्यवहार किया हो तो उनकी मजबूरी समझते हुए उन्हें भी क्षमा कर दें। इस बात का अहसास हो कि वह ऐसा नहीं करना चाहता था लेकिन उसके पास कोई विकल्प नहीं रहा होगा, इस बात को समझें और उसे क्षमा कर दें।
परमात्मा प्रभु ने कहा है कि स्वयं को समझना अध्यात्म है और सामने वाले को समझना क्षमापना है। सामने वाला क्षमा मांगे या नहीं मांगे आप उसे क्षमा कर दें। मांगने पर भीख और बिना मांगे वरदान दिया जाता है। भगवान महावीर से चंडकोशक ने क्षमा मांगी नहीं थी, शीलपाणी यक्ष ने क्षमा मांगी नहीं थी। परमात्मा ने उन पर पहले क्षमा का अमृत बरसाया उसके बाद वे परमात्मा के प्रति समर्पित हुए।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि अपने मन में भावना भाएं कि हे परमात्मा प्रभु, मेरे तन और मन से किसी अनर्थ का जन्म न हो। विश्व में हर जीव को आपके अस्तित्व का अहसास कराने में आपकी कृपा से मैं सफल बनंू। मुझे संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को आराध्य गुरुदेव और आपका अहसास हो।
आपके प्रति उसे समर्पित कर पाउं। मैं अपने नाम को समाप्त कर सुधर्मास्वामी के समान आपके शासन को समर्पित हो जाऊं। आपने बहुत अनुग्रह करे, इतना अनुग्रह करें। यह विराट व उदार संघ जिनके जीवन में केवल भक्ति का संगीत गंूजता है। जो एक छोटे से संकेत को पूरा करने मे पूरा जोर लगा देते हैं। ऐसी श्रद्धा, प्रेम और समर्पण बरसाने वाले आप सभी, के सहयोग से ही यह पर्युषण पर्व महापर्व का विशाल कार्यक्रम संपन्न हो पाया। इस प्रकार सभी से ‘‘खमंतु मे’’ की भावना के साथ कहा कि आप सभी क्षमा के दाता और दानी बनें, यह भावना मन में भाएं।
उन्होंने कहा कि जो क्षमापना करता है उसके हृदय में आनन्द की गंगा बहने लगती है और वह अभय, निर्मल हो जाता है। इसलिए समय बीतने से पहले क्षमापना का काम कर लेना चाहिए। क्षमापना देने में दिल से श्रीमंत बनें। यह दिल जीतने का समय है इसमें रिश्ते जोड़ लें, जिंदगी के टूटे हुए रिश्ते पुन: जोड़े जा सकते हैं। अपने माता-पिता, गुरु, परमात्मा, अपने कर्मचारी, रिश्तेदार और अपने जुड़े हुए प्रत्येक जन से क्षमापना करें।
उपाध्याय प्रवर ने चातुर्मास समिति, एएमकेएम ट्रस्ट, उड़ान टीम, आनन्द तीर्थ महिला परिषद, यूथ एसोसिएशन, एएमकेएम महिला मंडल, अर्हम विज्जा फाउंडेशन, अन्य सहयोगी समितियां, समस्त कार्यकर्ता और सक्रिय पदाधिकारियों का आभार प्रकट करते हुए क्षमा भावना व्यक्त की।
पौषध व तपस्या करने वालों का अभिनन्दन और अनुमोदना की गई। अठाई की तपस्या के पारणे और पच्चखावणी कार्यक्रम संपन्न किए गए। चातुर्मास समिति के महामंत्री अजीत चोरडिय़ा ने क्षमापना के साथ विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजक समितियों, उपसमितियों, पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं से सहयोग और कार्य को सराहा।
कांता चोरडिय़ा ने पर्युषण पर्व के सभी कार्यक्रम सुचारू रूप से पूर्ण होने पर उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज का वंदन और क्षमापना के साथ के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। एएमकेएम ट्रस्ट के धर्मीचंद सिंघवी, शांतिलाल खांटेड़ ने क्षमापना पर्व पर अपने विचार व्यक्त किए।
उपाध्याय प्रवर ने अखण्ड नवकार महांत्रों के जाप के नवकार कलश की बोली लेने वाले सुमेरमल बेदमूथा परिवार को मंगलपाठ देते हुए कलश समर्पित किया गया। शनिवार, 15 सितम्बर को नवपद एकासन और प्रवचन का कार्यक्रम रहेगा और रविवार, 16 सितम्बर को मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम रहेगा।