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ज्ञान वाणी

स्वजनों पर क्रोध ना करें, बड़ों का सम्मान करें: प्रवीणऋषि

स्वजनों पर क्रोध ना करें, बड़ों का सम्मान करें: प्रवीणऋषि

चेन्नई. सोमवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज का उत्तराध्ययन सूत्र वाचन कार्यक्रम हुआ। परमात्मा के धर्म को सुनकर उन पर श्रद्धा करें। परमात्मा का धर्म उनसे अलग नहीं है। जो परमात्मा के धर्म को अर्थ और शब्द समग्र रूप से जानता है, वह देव बनता है और मोक्ष भी प्राप्त करता है। ऐसा धर्म को उपलब्ध कराने वाली स्तुति के प्रति स्वयं को समर्पित करें।

निंरतर गुरु की शरण में रहना चाहिए। नौका में तब तक रहना ही चाहिए जब तक किनारे पर न पहुंचे उसी प्रकार गुरु नौका के समान हैं। किस पल गुरु की जरूरत पड़ेगी कह नहीं सकते। चार ज्ञान और १४ पूरब के ज्ञान से संपन्न इंद्रभूति गौतम को परमात्मा के उद्बोधन की आवश्यकता पड़ती है कि परमात्मा हमें संभाल लें। मन में किस समय खिन्नता और पछतावा आ जाता है आज सकता है जिस प्रकार इंद्रभूति गौतम को हुआ।

शाल राजा का प्रसंग बताते हुए कहा कि पृष्ठचंपा नगरी के राजा शाल ने परमात्मा के वचन सुनकर अपनी रानी और बेटे सहित दीक्षा लेते हैं और अपने भाणेज को सत्ता सौंपकर चले जाते हैं। लेकिन एक बार उनके मन में आता है कि मैंने अपने भाणेज को सत्ता सौंपकर ठीक नहीं किया, उसको संसार में उलझा दिया है। वे उसे धर्म के मार्ग पर लाना चाहता है। वह परमात्मा से कहता है कि मैंने उसे पहले सत्ता और सिंहासन दिया अब उसे सत्य का मार्ग देना चाहता हंू उसे उद्बोधन देने जाने की भावना है। परमात्मा इंद्रभूति सहित उन्हें जाने की अनुमति देते हैं। इंद्रभूति की अनन्त लब्धियां और परमात्मा का आशीर्वाद साथ हो तो दलदल से बाहर आने में देर नहीं लगती है।

राजा गागलिक और उसका पुत्र दोनों ही दीक्षित होते हैं और शाल मुनि के मन में चलते-चलते अनुभूति होती है कि मैं कर्ज से मुक्त हो गया और परमात्मा की कृपा को धन्यवाद देते हैं। गागलिक और उनका दोनों दीक्ष लेते हैं और शाल मुनि के साथ जाते हुए सोचते है कि कैसे मेरे मामा ने मुझे धन और सत्ता देकर संसार समझने का अवसर दिया और अब अनूठा साधना का मार्ग प्रदान किया है। आज मैं बोझ और तनाव से मुक्त हो गया। ऐसा सोचते हुए वह चलते जाते हैं। एक-एक रिश्ते और स्मृति को छोड़ते होते हैं। वह दिल से कृतज्ञता की गहराईयों में डूबते जाते हैं। बिना हाथों से चरण छुए वे बार-बार दिल से अपने मामा के चरण छूते जाते हैं। इस अनुभूति के चलते-चलते उनको केवलज्ञान प्राप्त हो जाता है। परमात्मा के पास पहुंचने से पहले ही उन चारों को ही केवलज्ञान हो गया।

उस समय उन्हें देख एक पल के लिए इंद्रभूति गौतम को स्वयं की साधना और अस्तित्व के लिए नकारात्मक भाव आता है कि इन्होंने आज ही दीक्षा ली और केवली हो गए और मैं ऐसा ही रह गया। स्वयं के अधूरेपन को लेकर उनका आत्मविश्वास डगमगाने लगा। परमात्मा ने उसके डगमगाते हुए विश्वास को देखा और संभाला। जीवन में सबसे बड़ा पाप और दु:ख प्रमाद है। इससे मुक्ति का एक ही रास्ता है अप्रमाद। जब सजगता चली गई, तो प्रमाद और उसमें ही दु:ख के बीज होते हैं। एक पल के प्रमाद से सालों की साधना को बरबाद कर देता है और एक पल की सजगता सालों के पापों को धो देता है।

अपने से यदि दूसरों का काम बनता है तो पछताएं नहीं, समझें कि इंद्रभूति बनने का सौभाग्य मिला है। परमात्मा कहते हैं कि इस जीवन को समझ और प्रमाद में मत जा। व्यक्ति को लगता है कि लंबे समय तक रहंूगा लेकिन आयुष्य कब टूट जाएगा पता नहीं, आयुष्य तो छोटा है लेकिन बाधाएं बहुत है। छोटे से जीवन में अनेकों परेशानियां हैं। इस जीवन की मुश्किलों के मूल कारण को देखें और इस जन्म में उन्हें दूर करने में ला जाएं। मनुष्य भव दुर्लभ है, कर्म का विपाक बहुत गहरा है इसे जान। पृविीकाय के जीव बिना पाप किए हुए भी पाप नहीं करने का पच्चखान नहीं ले पाता है और इस कारण उनका पाप विपाक बहुत गहरा होता जाता है।

वे किसी को कष्ट नहीं देते लेकिन उसे नहीं करने का निर्णय नहीं ले पाते और निम्न गति में जाते रहते हैंं। एकेन्द्रिय, बियेन्द्र, सूक्ष्म से जीव की गति को याद करें कि उस समय में आपने पाप न करने की भावना नहीं रखी। लेकिन मनुष्य जन्म में यह कर सकते हैं, कुछ लोग इस जीवन में भी उन सूक्ष्म और पशुओं के समान जीवन जीते हैं और पाप न करने के पच्चखान  नहीं लेते हैं और अपने पाप विपाक को और गहराते जाते हैं। उसके अठारह पापों का निरंतर बंध होता जाता है। जो पच्चखान कर लें तो जो करेगा उसी का ही बंध होगा जो नहीं किया उसका नहीं होगा। एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय और देवता, नारकी के जीवों

यह संसार शुभ अशुभ कर्मों से निरंतर चलता ही रहता है। यह जीव प्रमाद बहुत करता है। एक समय का भी प्रमाद मत कर। हम सब सौभागयशाली हैं जो हमें जैन कुल में जन्म और जन्मजात सकारात्मक विचार और संस्कार मिले, इसे आर्यत्व कहते हैं। कई लोग इन सब को प्राप्त करते हुए भ्ज्ञी पांचोन्द्रियां स्वस्थ नहीं मिल पाती है।

सौभाग्यशाली हैं कि ऐसा स्वस्थ शरीर मिला। जब तक शरीर चलता है तो इसकी कीमत पता नहीं चलती है और एक अंग भी काम करना बंद कर दे तो इस शरीर की कीमत मालूम चल जाती है। उस समय पता चलता है कि स्वास्थ्य की कीमत पता चलती है। पता कहते हैं कि व्यभिचार और नशे के कारण अपने शरीर को बर्बाद मत कर, सर्वश्रेष्ठ धर्म को सुन और जो श्रेष्ठता की ओर ले जाएं ऐसे धर्म की राह पर चल। उत्तम धर्म को प्राप्त करके भी लोग गलत रास्ते को चुन लेते हैं। तू सौभाग्य शाली है कि गलत रास्ते से सही रास्ते पर आ गया। परमात्मा कहते हैं कि तुम भी उस रास्ते पर छोड़कर धर्म के रास्ते पर आया है।

परमात्मा इसलिए कहते हैं कि पल मात्र का भी प्रमाद मत कर। कुछ लोग फिलोसापी स्वीकार करने के बाद भी प्रेक्टिल नहीं कर पाते हैं।

सच्चाई को छिपाना नहीं चाहिए। इस शरीर को कितना ही संभलेंगे तो भी यह दिन ब दिन बुढ़ापे की ओर जाना ही है। उससे पहले संभल जाओ। तुम्हारे पास बहुतकुछ था उसे छोड़कर आया है उसकी वापस मत देख, मन में खिननता मत ला। आज नहीं संभला तो कल यही कहेगा कि संभालने वाला नहीं है। जब तक गुरु माता-पिता संभालते हैं तो कीमत पता नहीं चलती है। उन संभालने वाले हाथों के रहते हुए उनकी कीमत समझें। तुमने तो कंटीला रास्ता पार कर लिया है। अब तो आगे का रास्ता फूलों का है फिर क्यों मिथ्यात्व, चमत्कार और पाखंड के कांटों में जाते हो।

जिनके चरणों में मत्था टेका है उनका अनादर मत करिए। किनारे पर आने के बाद एक कदम मंजिल पर पहुंचा देगा। अशरीरी श्रेणी मार्ग केा चुना है उससे सिद्ध में जाएगा। तुझे कल्याण प्राप्त होगा। इंद्रभूति उसे सुनकर स्वीकार करते हैं और फिर उनके जीवन में कभी प्रमाद नहीं आया। हम भी ऐसा प्रण करें कि कभी प्रमाद न आए। यह प्रार्थना जिनके जीवन में चले। परमात्मा कहते हैं कि बहुश्रुत की पूजा करें।

बड़ों को बड़प्पन का सम्मान दीजिए, यह कहीं नहीं मिलेगा। ज्ञान कहीं भी मिल जाएगा लेकिन बड़प्पन कहीं नहीं मिलेगा। अल्पबुद्धिवाले गुरु का भी सम्मान करना चाहिए। कोई सुमेरु गिरे से गिरकर बचकर सकता है लेकिन ज्येष्ठता का सम्मान न करने वाला बच नहीं सकता है। चंचल और अस्थित मत बन।

पारदर्शिता रखें, अपने परिवार और बड़ों से कुछ मत छिपाओ, वहां रहस्यता की आवश्यकता नहीं है, ज्यादा कौतूहल और किसी के गिरेहबान में झांकें न, उसके अपराधों को मत देख। किसी बात की मन में गांठ मत बांध नहीं ता ेअन्दर का सारा सामथ्र्य समाप्त हो जाएगा। ऐसा व्यक्ति दुर्भागी बन जाता है। तन में गठिया हो जाए तो दु.ख देती है तो मन और चेतना में हो जाए तो बडी दु:ख दायी है। सदैव मित्रता की भक्ति कर। जो दोस्ती करना चाहता है उसे इन्कार मत कर। परमात्मा के ये सूत्र अध्यात्म के साथ जीवन में सदैव परम सत्य है।

परमात्मा कहते हैं कि ज्ञान प्राप्त करके अहंकार मत कर, नशे में मत जाओ। किसी की गलती को बार-बार मत दोहराओ उसे। जिनसे प्रेम है और मैत्री है उनकी निन्दा मत करो, सदैव कल्याण भाव रखें। स्वयं में तल्लीन होने का प्रयास करो। जिसके जीवन में ये बातें हो वह बहुश्रुत बन जाता है। उसके जीवन मंगलमय बन जाएगा।

जेा बहुश्रुत हो जाता है उसका मन कंबुज के घोड़े के समान हो जाता है, वह शूर और पराक्रमी बनकर जीता है। वह वासुदेव के समान बन जाता है। वह ऐश्वर्यशाली चक्र और सहस्र आंखों से देखने वाला सूर्य, और इन्द्र बन जाता है। परमात्मा कहते हैं कि इसके बाद श्रुत का अध्ययन कर। जिसके कारण स्वयं को मंजिल पर पहुंचा सके और दूसरों को भी पहुंचा सके। हमें ऐसा बनना चाहिए।

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