जय जिनेंद्र, कोडमबाक्कम् वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 8 अगस्त सोमवार को प.पू. श्री सुधाकवर जी मसा ने आराध्य देव महा प्रभू भगवान महावीर की मंगलमयी वाणी का वाचन करते हुये श्रावक के छः आवश्यक सूत्रों में से दूसरा सूत्र “चतुर्विघ संघ” को बताया! स्तवन से 24 तीर्थंकरों की स्तुति की जाती है! स्तवन एक रचना है और स्तुति भक्ति है, आस्था है!
वर्तमान अवसरपिनी काल है! और इस काल में ऋषभ भगवान से लेकर महावीर भगवान तक सभी तीर्थंकरों की स्तुति लोगस्स के पाठ से या पुच्छिसुणम पाठ से की जाती है! तीर्थंकर परमात्मा धर्म के उपदेश कर्ता भी है! सभी तीर्थंकर हमसे ज्यादा गुणीमय, भक्तिमय, आस्थामय, प्रेममय, श्रद्धामय एवं समर्पण मय हैं! भक्ति की पवित्रता आत्मा और परमात्मा के बीच की रेखा को मिटा देती है!भक्ति से मुक्ति की प्राप्ति होती है! प.पू. सुयशा श्रीजी मसा ने आज नफरत और नफरत के साइड इफेक्ट्स के बारे में फरमाया! हमारी नफरतें और हमारा उतावलापन हमें बेचैन कर देता है और हमारा रोकना, टोकना, डांटना, डपटना शुरू हो जाता है और यह सब होने की वजह हमारे expectation यानि अपेक्षाएं हैं!
हम हर समय यही सोचते हैं कि सब कुछ वैसा ही हो जैसा हम चाहते हैं! अगर हमारा एक दिन का मौन व्रत हो तो भी हमारे सामने होने वाली गलतियों के बारे में सोचते हैं और मन मसोसकर रह जाते हैं कि आज मौनव्रत है वरना, मैं इसे इतनी खरी-खोटी सुना देता!हमारी दिनचर्या में बहुत सी आदतें ऐसी होती है जिन्हें हम addiction यानी लत भी कह सकते हैं! मोबाइल व्हाट्सएप, पान, गुटका, जर्दा, चाय काफी जैसी चीजें आजकल हमारी जिंदगी में addiction बन गयी है! इन पर काबू पाना कुछ हद तक हमारे हाथ में है!
लेकिन जब हम हमारे घर से दूसरे घरों की, हमारी आदतों से दूसरे लोगों की आदतों की तुलना करना शुरू कर देते हैं तो हम ज्यादा दुखी हो जाते हैं! त्योहार पर, समारोह पर, शादी-ब्याह पर या पार्टी पर अपने अपने लेवल से तुलना करने लग जाते हैं तो हमें सभी गलत लगने लगते हैं! आडंबर रहित करने वालों में भी और आडंबर ज्यादा करने वालों में भी हमें ग़लतियां ही नजर आती है! हम चाहते हैं कि प्रधानमंत्री जी भी वही करें जो हम चाहते हैं! और हम यह भी जानते हैं कि ऐसा कुछ होने वाला नहीं है! बस, यही हम सोच लें कि सभी लोगों के साथ भी जैसे मोदी जी को हम बदल नहीं सकते वैसे हम लोगों को भी बदल नहीं सकते! हमें किसी के भी व्यवहार में, व्यापार में या सोच में बाधक नहीं बनना चाहिए!
हमारी आदतें हमें दुखी और कमजोर बनाती है! इसलिए हमें हमारा मन ऐसा बनाना चाहिए जो जैसा है उसे वैसा ही अपना लें! और जरूरत पडे तो पूछने पर ही अपनी राय देवें! दूसरों पर अपनी राय जबरदस्ती थोंपनी नहीं चाहिए! ऐसा समभाव हमारे मन में आ जाए तो हम भी सुखी रहेंगे और दूसरों को भी सुखी रखेंगे! आज की धर्म सभा में श्रीमती सुशीला जी बाफना ने 28 उपवास एवं मनीषा जी लुंकड ने 23 उपवास के प्रत्याख्यान किए। इसी के साथ कई धर्म प्रेमी बंधुओं ने विविध तपस्याओं के प्रत्याख्यान लिए। इसी के साथ आज के धर्म सभा में बिजयनगर (राजस्थान), बेंगलुरु एवं चेन्नई के कई उपनगरों से श्रद्धालु गण उपस्थित हुए।