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ज्ञान वाणी

सुरक्षित वातारण में ही संभव है शास्त्र चर्चा

सुरक्षित वातारण में ही संभव है शास्त्र चर्चा
ंतंजावुर. जिले के तिरुमलैसमुद्रम गांव स्थित शास्त्र मान्य विश्वविद्यालय में पधारे आचार्य महाश्रमण ने कहा कि दुनिया में दो शब्द हैं-शस्त्र और शास्त्र। शब्द की दृष्टि से दोनों में काफी समानता है, किन्तु दोनों बहुत अंतर है। जहां धर्म शास्त्रों की चर्चा होती है, जहां शास्त्रों की व्याख्या हो और उसको पालने वाले हों तो वहां शस्त्र की कम जरूरत पड़ती है।
शस्त्रों की ज्यादा अपेक्षा वहां होती है, जहां शास्त्र नहीं होते। जहां शास्त्र नहीं होते वहां धर्म नहीं होता। हालांकि शस्त्र सुरक्षा के लिए भी आवश्यक होता है। सुरक्षा के लिए शस्त्र की आवश्यकता होती है और जो देश शस्त्र से रक्षित होता है, वहां शास्त्र की चर्चा भी अच्छे हो सकती है तथा जो देश शस्त्र से रक्षित न हो तो वहां दुश्मनों का डर, आतंक का डर बना रह सकता है और वहां शास्त्र की चर्चा संभव नहीं हो सकता है।
सीमा की सुरक्षा में इतने जवान लगे हुए हैं तो सीमा के अंदर रहने वाले लोग आराम से शास्त्र की चर्चा कर लेते हैं। शस्त्र मूलत: मारने के लिए नहीं, सुरक्षा के लिए आवश्यक होता है। आदमी शस्त्र को जाने, किन्तु उसकी अपेक्षा न पड़े ऐसा प्रयास करना चाहिए। आचार्य ने इस विश्वविद्यालय में पदार्पण के संदर्भ में कहा कि हम इस मान्य विश्वविद्यालय में आए हैं।
यहां के विद्यार्थियों को धर्म शास्त्र की चर्चा सुनाई जाए तो वह कल्याणकारी बात हो सकती है। आदमी को अहिंसा के पथ पर चलने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा भगवती हैं। आदमी के व्यवहार में, परिवार में, समाज में और राष्ट्रनीति में भी जितना संभव हो सके अहिंसा का समावेश होना चाहिए।
आदमी को अहिंसा की आराधना करने का प्रयास करना चाहिए।  प्रवचन के पश्चात विश्वविद्यालय से जुड़े स्वामीनाथन ने  आचार्य से आशीर्वाद प्राप्त किया।

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