चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा सुख महत्वाकांक्षा की पूर्ति में नहीं, सुख अहम की पुष्टि एवं अमीर-गरीब होने में नहीं, सुख अनपढ़ या विद्वान होने या उच्च पद पर पहुंचने में भी नहीं है, सुख है विवेकपूर्ण समझ और आत्म-संतोष में। अपनी समझ बढ़ाकर उसका सदुपयोग करें।
अवसर मिले तो सत्संग में जाएं। ज्ञान और वैराग्य के अभाव में भक्ति रोती है एवं श्रद्धा के अभाव में भक्ति अंधी है। जब दो बाल्टी पानी रखने वाले घड़े को भी कसौटी पर कसा जाता है उसे भी हिचकोले खाने पड़ते हैं फिर आप तो इन्सान हैं। आप में परमात्मा का वास है। आपका अपना क्या है। आपकी बेटी जंवाई की अमानत है समय आने पर ले जाएगा। बेटा बहू की अमानत है समय आने पर उसका हो जाएगा। शरीर श्मशान की अमानत है समय आने पर जला दिया जाएगा।
केवल तुम्हारा तो परमात्मा है जिसके हो उसके हो जाओ। गीता मात्र सांसारिक ज्ञान ही नहीं आत्मज्ञान भी देती है व आत्मबल जगाती है। गीता वेदों का अमृत है जो कृष्ण ने अर्जुन को पिलाया। शंकर ने भी इसका पान किया। इसीलिए भारतीय संस्कृति में श्रीकृष्ण की विशेष आराधना होती है। जीवन में आग लगाने वाले छह दुर्गुण हैं-अविश्वास, कलह, वैरभाव, स्वार्थ, प्रतिस्पर्धा और अहंकार।
आज देश इसी आग में जल रहा है। सर्प कितना भी सुंदर हो बाहों का आभूषण नहीं बन सकता। मेहमान यदि मेहमान की तरह रहकर संस्कृति के नियम का पालन करता है एवं भारतीय संस्कृति का समर्थन करता है तो अच्छी बात है और यदि संस्कृति के प्रति विद्रोह करता है तो अच्छी बात नहीं।