साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने गुरुवार को पर्यूषण पर्व के आखिरी दिन संवत्सरी के अवसर पर कहा कि यह बहुत ही महान पर्व है। सुख और दुख मनुष्य को उसके विचारों से मिलता है। यह जानकर प्रत्येक व्यक्ति को प्राणीमात्र के साथ मित्रता का भाव रखना चाहिए तभी मनुष्य जीवन में शांति, आनंद और सुख प्राप्त कर पाएगा।
इस दिन अपने करीबी से क्षमायाचना करनी चाहिए। संवत्सरी पर्व की दिव्य आराधना से किया हुआ प्रतिक्रमण मनुष्य की समस्त आलोचनाओं को दूर कर आत्म को हल्का बनाने का कार्य करती है। प्रतिक्रमण से शुद्धि करण होता है। यदि कोई दोष है तो प्रतिक्रमण से उसकी शुिद्ध की जा सकती है। अगर कोई दोष नहीं है तो प्रतिक्रमण से आत्मा को और शुद्ध किया जा सकता है। मनुष्य की आत्मा के मैल को दूर करने के लिए प्रतिक्रमण करना जरूरी होता है।
उन्होंने कहा कि संवत्सरी मनाने के बाद लोग क्षमायाचना करते हैं। ज्ञानी कहते हैं कि सही मायने में बिगड़े हुए रिश्ते सुधारने के लिए क्षमा याचना करना बहुत जरूरी होता है। सच्चे अर्थों में जब किसी व्यक्ति से दिल से क्षमायाचना की जाती है तो सामने वाला क्षमा करने से नहीं चूकता है। इस संवत्सरी के अवसर पर एक-दूसरे से क्षमा याचना कर जीवन को सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि संसार में हमें न कोई सुख देनेे वाला है और न ही दुखी करने वाला।
सागरमुनि ने कहा यह पर्व मनुष्य को उसकी गलतियों को सुधारने का मौका देता है। ऐसा मौका आने पर अपनी गलतियों के लिए माफी मांग लेनी चाहिए। पर्यूषण का पर्व यही संदेश देता है कि मनुष्य अपने प्रयासों से लोक के अंधेरे में उजाला करे। पर्यूषण पर्व मनुष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता हैं। उपप्रवर्तक विनयमुनि ने मंगलपाठ सुनाया। इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आंनदमल छल्लाणी, उपाध्यक्ष निर्मल मरलेचा, नरेंद्र कोठारी, सहमंत्री पंकज कोठारी और कोषाध्यक्ष एन. गौतमचंद दुगड़ सहित अन्य लोग उपस्थित थे। मंत्री मंगलचंद खारीवाल ने संचालन किया।