चेन्नई. सुखी बनना है तो अपनी इंन्द्रियों के विकारों का त्याग करना होगा। विकार का त्याग करने वालों को ही मंजिल मिल पाती है।
साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा यह जीवन कुछ बनने के लिए मिला है। खुद को बनाना या बिगाडऩा मनुष्य के हाथ में है। उसके पास परमात्मा ने सारी व्यवस्था दी है। वह उन व्यवस्थाओं का कैसे उपयोग करता है यह उस पर निर्भर करता है। मनुष्य जैसा सोचता है वैसा बन भी जाता है। अध्यापक बनने की इच्छा रखने वाला अध्यापक और डॉक्टर की इच्छा रखने वाला डाक्टर बन जाता है।
ऐसे में परमात्मा बनने की इच्छा रखने वाले परमात्मा भी बन सकते हैं लेकिन करणीय कार्य करने पर यह मुकाम हासिल हो पाएगा। नवरात्रि के दिनों में मनुष्य को कषायों से दूर होने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि क्रोध, मोह, माया और लोभ आत्मा पर कालिक पोतकर उसे बदतर बनाने का कार्य करते हैं। इन कषायों का त्याग करना ही सच्चे अर्थो में नवरात्रि का दिव्य संदेश होता है। जो भाग्यशाली इन संदेशों का अनुसरण कर जीवन को बदलने का प्रयास करेंगे वे सफल हो जाएंगे।
सागरमुनि ने कहा नवरात्रि जीवन में सुधार लाने के लिए आते हंै। गुरु दर्शन से जब ज्ञान की प्राप्ति होती है तभी जीवन का कल्याण होता है। सिर्फ ज्ञान आने से नहीं बल्कि उसका अनुसरण करने से जीवन में बदलाव आता है। आचरित करने वाला ज्ञान ही मनुष्य को प्रकाश का मार्ग दिखाता है। इसके बाद मुनिगण सज्जनराज पदमचंद सिंघवी के निवास पर आयोजित नवकार मंत्र के कलर्स जाप में पहुंचे एवं उद्बोधन के साथ ही आशीर्वचन दिया। इस मौके पर संघ अध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी, उपाध्यक्ष निर्मल मरलेचा व मंत्री मंगलचंद खारीवाल भी उपस्थित थे।