चेन्नई. आत्मा भी सिद्ध पद की साधना से मोक्ष की ओर बहने लगती है। लेकिन जब इंसान में सरलता नहीं है, बाहर कुछ अंदर कुछ है तो सिद्ध पद की साधना नहीं हो सकती है। सिद्ध में जो शक्ति है वह शक्ति हर भव में है।
एसएस जैन संघ ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि नवकार महामंत्र का द्वितीय पद भगवान की साधना करना है। जो व्यक्ति सरल बन जाता है वो तरल बन जाता है। ठोस वस्तु एक जगह पड़ी रह जाता है। तरल पदार्थ बहाव की दिशा में बह जाता है।
हमारी शक्ति बादलों में ढंके सूर्य के समान है। सिद्धों का हम पर अनंत उपकार है। जैसे अंगारा लाल होता है और घास के ढेर को जला कर राख कर देता है वैसे ही सिद्ध पद के लाल वर्ण हमारे कर्मों को जलाकर राख कर देता है। साध्वी सुप्रतिभा ने कहा कि संसार में दो प्रकार के प्राणी होते हैं।
जीवों का शरीर होता है तो समस्या भी साथ रहती है। जिनवाणी मोक्ष प्राप्ति का रास्ता है। जिसके बिना अंतर में प्रकाश नहीं होता। अगर हमें जिनवाणी पर पक्का विश्वास हो जाए तो निश्चित कल्याण होगा।