कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अखंड परिव्राजक, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में पर्युषण पर्वाधिराज पूर्ण आध्यात्मिक ठाट के साथ मनाया जा रहा है।
भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर ले जाने वाले इस महापर्व में देश-विदेश से हजारों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालु धर्माराधना कर अपने जीवन को सुफल बनाने में जुटे हुए हैं। श्रद्धालुओं की धर्माराधना को पुष्ट बनाने के लिए आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल मार्गदर्शन में चारित्रात्माओं द्वारा भी प्रेरणा प्रदान की जा रही है।
हजारों की संख्या में श्रद्धालु आचार्यश्री के प्रातः दर्शन, मंगलपाठ श्रवण के पश्चात् चारित्रात्माओं द्वारा कराए जाने वाले विभिन्न धार्मिक व आध्यात्मिक प्रयोगों में हिस्सा लेते हैं, उसके उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में प्रतिदिन आयोजित होने वाले मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित होकर श्रीमुख से प्रस्फुटित होने वाली मंगलवाणी का श्रवण कर अपने जीवन कल्याण करते हैं। उसके उपरान्त पूरे दिन धर्माराधना का क्रम चलता रहता है और श्रद्धालु इस आध्यात्मिक वातावरण में अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार धर्मोपासना का लाभ उठा रहे हैं।
गुरुवार को प्रातः आचार्यश्री अपने प्रवास स्थल से कुछ सौ मीटर की दूरी पर स्थित विशाल कन्वेंशन हाॅल में पधारे। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में सर्वप्रथम साध्वी वैभवयशाजी ने भगवान शांतिनाथ के जीवनी को प्रस्तुत किया।
मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने दस धर्मों में क्रमशः तीसरे तथा चैथे धर्म आर्जव-मार्दव पर आधारित गीत का सुमधुर स्वर में संगान किया। तत्पश्चात् साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने आर्जव-मार्दव धर्म की विवेचना करते हुए श्रद्धालुओं को मन, वचन और काय से सरल बनने, अपने स्वभाव को अच्छा रखने और विनम्र बनकर अपनी आत्मा को निर्मल बनाने के लिए उत्प्रेरित किया।
पर्युषण पर्वाधिराज का तृतीय दिवस सामायिक दिवस के रूप में आयोजित था। सामायिक दिवस से संबंधित गीत का संगान साध्वी चेलनाश्रीजी, साध्वी शौयप्रभाजी आदि साध्वियों ने किया। तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखा साध्वी कनकप्रभाजी ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि सामायिक को अनेक रूपों में परिभाषित किया गया है, किन्तु मूल रूप से कहा जाए तो सावद्य योगों का त्याग कर, राग-द्वेष के भावों मुक्त होकर समता भाव में रहना सामायिक है। सामायिक मोक्ष की ओर गति करने का एक अंग है। सामायिक चैदह पूर्वों का संक्षेप है। सामायिक जीवन को ऊध्र्वारोहण की ओर ले जाती है। सामायिक के दौरान भाव विशुद्धि हो तो सामायिक का अच्छा लाभ हो सकता है।
भगवान महावीर के प्रतिनिधि के रूप में स्थापित महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनमेदिनी को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का प्रसंग चल रहा है। भगवान महावीर की आत्मा को प्रथम भव नयसार को समत्व की प्राप्ति हुई और अपना आयुष्य पूर्ण कर नयसार की आत्मा प्रथम देवलोक में पैदा हुई।
वहां अपने आयुष्य को पूर्ण करने के पश्चात् दूसरे भव के लिए वह आत्मा पुनः मृत्युलोग में आई। मृत्युलोग में उस समय के चक्रवर्ती राजा भरत के पुत्र मरिचि के रूप में पैदा हुआ। वह भगवान ऋषभ के पौत्र के रूप में जन्मे। एक समय उनके नगर में भगवान ऋषभ का शुभागमन होता है। उनकी वाणी से प्रेरित होकर मरिचि के भीतर वैराग्य भाव जागृत होता है, वे साधु बन भी गए। साधु बनने के बाद उन्होंने आगम का अध्ययन आरम्भ किया।
आचार्यश्री ने साधु-साध्वियों तथा समण-समणियों को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि सभी साधु-साध्वियों को ऐसा प्रयास करना चाहिए कि एक वर्ष में एक आगम का स्वाध्याय हो जाए। प्रातःकाल साधु के हाथ में अखबार नहीं, आगम हो तो बहुत अच्छी बात हो सकती है। आचार्यश्री ने पुनः यात्रा वृतांत को आगे बढ़ाते हुए कहा कि कुछ समय पश्चात् कुछ कठिनाइयों के कारण साधु बने मरिचि ने साधुपन को छोड़ दिया, लेकिन घर न जाकर अलग ढंग से साधना करने लगा। आचार्यश्री ने साधु-साध्वियों को पानी का उपयोग में जागरूकता रखने को भी उत्प्रेरित किया।
तत्पश्चात् आचार्यश्री ने चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी का वाचन किया। बालमुनि शुभमकुमारजी, मुनि ऋषिकुमारजी व मुनि उपशमकुमारजी तथा 21 नवदीक्षित साध्वियों ने आचार्यश्री के निर्देशानुसार लेखपत्र का उच्चारण किया। उसके उपरान्त सभी चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण कर अपनी निष्ठा के संकल्पों को दोहराया। आचार्यश्री ने मुनियों को कल्याणक भी बक्साया।
🏼संप्रसारक🏼
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*जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा*