माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में पर्यूषण पर्व के तीसरे दिन को सामायिक दिवस रूप में मनाया गया। इस मौके पर आचार्य महाश्रमण ने कहा साधु को तो सावद्य योग का जीवनभर के लिए त्याग होता है। श्रावक को अल्पकालिक सावद्य योग जबकि साधु को पूर्णकालिक सावद्य योगों का त्याग होता है।
सामायिक समता की आय वाला उपक्रम हो। आदमी को यह ध्यान रखना चाहिए कि यदि शादी समारोह का अवसर भी शनिवार को है और शादी में देर है तो शादी के मण्डप और आसपास भी सभी स्वजनों के साथ सामूहिक रूप में सामायिक की जा सकती है। इस प्रकार शादी का मण्डप भी सामायिक का मंडप हो सकता है। ऐसा हो तो कितनी अच्छी बात हो सकती है।
सामायिक में गृहस्थ भी साधु जैसा ही बन जाता है। जैसे साधु के मुखवस्त्रिका होती है और गृहस्थ के भी मुखवस्त्रिका होती है। वस्त्र, वेशभूषा के हिसाब से दोनों में कुछ समानता होती है। इतना ही नहीं, सावद्य योगों के त्याग में भी कुछ समानता आ जाती है। कुछ समय के लिए ही सामायिक करने वाले को भी सावद्य योग का त्याग होता है।
आदमी समय का ऐसा प्रबन्धन करे कि शनिवार को सायं सात से आठ बजे का समय सामायिक के लिए आरक्षित हो जाए। सामायिक के दौरान तेरापंथ प्रबोध का स्वाध्याय हो आख्यान प्राप्त हो जाए तो और अच्छी बात हो सकती है। सामायिक अपने आप में संवर है और उस दौरान होने वाले स्वाध्याय, ध्यान आदि शुभ योग होते हैं।
सामायिक के दौरान चारित्रात्माओं का सान्निध्य मिल जाए और उनके मुख से कुछ सुनने को मिल जाए तो अच्छी बात हो सकती है। सामायिक समता का आधार है और समता को धर्म बताया गया है इसलिए आदमी को अपने जीवन में सामायिक की कमाई का प्रयास हो तो धर्म के क्षेत्र में गति हो सकती है।
भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ के क्रम में आचार्य ने भगवान महावीर के दूसरे भव मरीचिकुमार के विषय में बताया कि जब उन्हें साधुओं से प्रेरणा मिली तो उन्होंने मुनि दीक्षा स्वीकार कर ली, किन्तु परिसह सहन नहीं कर पाए इसलिए एक साधुपना स्वीकार कर त्रिदण्ड एवं छत्र धारण कर लिया और वस्त्र भी श्वेत से गेरुआ पहन लिए।