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ज्ञान वाणी

साधना का पर्व सुनहरा विषय पर प्रेरक उद्बोधन तेले के तपस्यार्थियों का निकला वरघोड़ा

साधना का पर्व सुनहरा विषय पर प्रेरक उद्बोधन  तेले के तपस्यार्थियों का निकला वरघोड़ा
अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में साध्वी कुमुदलता व अन्य साध्वीवृन्द के सान्निध्य तथा गुरु दिवाकर कमला वर्षावास समिति के तत्वावधान में शनिवार को करीब 700 तेले तप के तपस्यार्थियों का भव्य वरघोड़ा निकाला गया।

विभिन्न मार्गों से होता हुआ वरघोड़ा दिवाकर दरबार में पहुंचकर धर्मसभा में परिवर्तित हो गया। इस अवसर पर अपने मंगल उद्बोधन में तपस्यार्थियों की प्रशंसा करते हुए साध्वी कुमुदलता ने कहा कि श्रद्धालुओं के प्रबल पुण्योदय से ही यह ऐतिहासिक धर्म आराधना संभव हुई। कर्मों के पुण्योदय से ही इतनी तपस्याएं हुई और इतने लोग धर्म से जुड़े।

अगर तपस्यार्थी आगे आएंगे तो अन्य श्रावक-श्राविकाएं भी तपस्या के लिए प्रेरित होंगे।

आगम वाणी के माध्यम से साधना का पर्व सुनहरा विषय पर उन्होंने मुनि गजसुकुमार का जीवन वृतांत सुनाया। उन्होंने कहा कि मां देवकी को उदास देखकर भगवान श्रीकृष्ण उनकी उदासी कारण पूछ बैठते हैं।

देवकी कृष्ण से कहती है कि मेरे सात पुत्र हैं लेकिन मैंने किसी का बचपन नहीं देखा। श्रीकृष्ण तेले की तपस्या करते हैं और देववाणी होती है कि देवकी को पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी और वह अरिष्टनेमि भगवान से दीक्षा लेगा।

माता देवकी ने आठवें पुत्र को जन्म दिया। बालक हाथी के तालू समान कोमल था, इसलिए नाम रखा गजसुकुमार। युवावस्था में आने पर गजसुकुमार की शादी सोमिल ब्राह्मण की पुत्री के साथ तय की जाती है लेकिन भगवान अरिष्टनेमि के उपदेशों से प्रभावित होकर गजसुकुमार संयम पथ पर कदम बढ़ा देता है।

दीक्षा लेने के बाद अरिष्टनेमि की आज्ञा लेकर श्मशान में साधना करते हैं। इस दौरान वहां से सोमिल ब्राह्मण गुजरते हैं और उनके मन में मुनि गजसुकुमार के प्रति बैर भावना जाग जाती है।

उन्होंने साधरना रत मुनि के सिर पर जलते अंगारे रख दिए लेकिन गजमुनि ने समभाव रखते हुए कहा कि मेरे कर्मों की निर्जरा तो मुझे ही करना होगी और मन में ब्राह्मण के प्रति लेशमात्र भी बैर भाव उत्पन्न नहीं हुआ। इस प्रकार अपने कर्मों की निर्जरा करते हुए वह सिद्ध-बुद्ध को प्राप्त हुए।

साध्वी महाप्रज्ञा ने ‘शमां है कितना सुहाना, देखो ठाठ लगा है मस्ताना…Ó पंक्तियों का संगान करते हुए तपस्यार्थियों के प्रति मंगलभाव व्यक्त किए। साध्वी पदमकीर्ति ने आगमवाणी के माध्यम से अंतगढसूत्र का वाचन किया। संचालन हस्तीमल खटोड़ ने किया।

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