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ज्ञान वाणी

साधक राग भाव से बने मुक्त : आचार्य श्री महाश्रमण

साधक राग भाव से बने मुक्त : आचार्य श्री महाश्रमण
*संत ताप, पाप हरने वाले : गुरूराज राजाराम*
 
  *संत कृपाराम ने कहा कि “संतो के चरणों में तो हमेशा ही बालक बनकर ही रहना चाहिए”*
     माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में आचार्य श्री महाश्रमणजी के दर्शन कर *गुरू कृपा आश्रम, जोधपुर के गुरूराज राजारामजी महाराज*  ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य प्रवर के सानिध्य में एक कुंभ सा मेला लगा हुआ है| यहा आप सब आकर ज्ञान की गंगा में गोता लगाते हैं| बिना परमात्मा की कृपा, बिना प्रभु की अनुकम्पा के यह कार्य संभव नहीं है|
जो भी इस आयोजन में रात दिन प्रयास किया, उन लोगों को महाराज श्री ने, आप सब की भाव – श्रद्धा को देख कर समय दिया, चातुर्मास प्रदान किया और गंगा के अन्दर जाने से सभी ताप और पाप दूर हो जाते हैं, वैसे *चेन्नई की धरती पर इस महाकुंभ में महाराज श्री के शब्दों को सुन करके आपके भी ताप और पाप सब दूर होंगें,* ऐसी प्रभु से प्रार्थना करते हुए और महाराज श्री के चरणों में तो  सुनने के लिए आए हैं|
आचार्य श्री ने कोलकाता से लेकर चेन्नई तक लंबी दूरी मानव मात्र के लिए तय की है| यह ज्ञानयज्ञ, अहिंसा यात्रा नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति की प्रेरणा, पूरी मानव जाति के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगी, ऐसी मंगलकामना|
     *परम पावन आचार्य श्री महाश्रमण*  ने आज के प्रवचन में ठाणं सूत्र में दूसरे स्थान पर प्रकाश डालते हुए फ़रमाया कि संयम दो प्रकार का होता है -१.सराग संयम,२.वीतराग संयम| संयम की साधना पूर्ण रूप में साधु करता है|  मोक्ष तक पहुंचने के लिए चौदह सीढ़ियां, गुणस्थान जैन दर्शन में प्रज्ञप्त है|
श्रावक पाँचवी सीढ़ी तक देशविरति गुणस्थान तक पहुंच सकता है| छठे से चौवदहवें गुणस्थान के अधिकारी साधु ही होते हैं|  आचार्य श्री ने आगे कहा कि गुणस्थान यानि आत्मा की क्रमिक विशुद्धि|  छठे से दसवें गुणस्थान तक राग विद्यमान रहता है। 11वें में मोह की सर्वथा अनुदय अवस्था रहती है|
6 से 10 वें गुणस्थान तक के साधू सराग संयम वाले होते है| 11से 14वें तक के साधु वीतराग गुणस्थान वाले होते हैं।11वें में जानेवाले अवश्यम्भावी नीचे गिरते है। गिरता हुआ जीव पहली सीढी, गुणस्थान तक गिर सकता है। 12वें में मोह पूर्ण रुप से क्षीण हो जाता है। *अध्यात्म की साधना करने वाले, राग को कम करते हुए, वीतराग अवस्था को प्राप्त कर, मोक्षश्री का वरण कर लेते है।*
ऐसी साधना श्रावक – साधु दोनों को करनी चाहिए।  आचार्य श्री ने आगे कहा कि जहाँ राग होता है, वहां द्वेष भी रहता है। हमे राग के रहस्य को पहचान कर राग से मुक्त होने की साधना करनी चाहिए| साधु को क्रोध नहीं करना चाहिए, राग द्वेष को कम करना चाहिए, दूर रहना चाहिए| कषायोंं को क्षीण करना चाहिए, साधना से पतला करना चाहिए|
आचार्य श्री ने गुरूराज राजारामजी और संत कृपारामजी के मिलन पर कहा कि संतों का मिलना अच्छा होता हैं| आचार्य श्री ने कहा कि संत लोग स्वयं के आत्मकल्याण के साथ परकल्याण की भावना रखने वाले होते हैं, दूसरों के आत्मकल्याण में सहयोगी बनते हैं|
  आचार्य श्री ने कहा कि 15 वर्ष पहले सुरत में संत राजारामजी और कृपारामजी से मिलना हुआ, आज उसकी पुनरावृत्ति हो रही है। हम सब साधना में आगे बढ़ते रहे, मंगलकामना|
  *संत कृपाराम जी* ने कहा कि गुरु ही सर्वेसर्वा होते हैं| गुरु ही जीवन का निर्माण करते हैं| उनके चरणवृदो में मेरी वन्दना! सारी सृष्टि का संचालन करने वाले परमात्मा को प्राप्त करने के लिए हमें गुरु का आलंबन लेना पड़ता हैं| आज आचार्य महाश्रमणजी के श्री चरणों में हम पहुंचे हैं, जिनकी मुस्कान देखकर ही मन खुश हो जाता है| शांतिदूत अहिंसा यात्रा के प्रवर्तक मैं आपके श्री चरणों में नमन करता हूं, सभी संत समाज को नमन करता हूं, सभी का अभिवादन अभिनंदन करता हूं|
  संत कृपाराम ने आगे कहा कि मैं आज बहुत सौभाग्यशाली हूं क्योकि आप के दर्शन हुए| जब मैं बहुत छोटा था, लगभग साढ़े दस  वर्ष का था, तब मैंने सूरत में आचार्य महाप्रज्ञ जी के दर्शन किए|  उस समय भी आपके साथ ऐसे ही मंच पर आप श्री के दर्शन हुए थे| यह मेरा सौभाग्य समझता हूं कि मैं उस वक्त उपस्थित था, आपका आशीर्वाद मिला, आपकी वाणी का लाभ मिला|
मुझे कहना यही है कि *मैं तब भी बच्चा था और आज भी बच्चा हूं, संतो के चरणों में तो हमेशा ही बालक बनकर ही रहना चाहिए इसलिए मुझे गौरव है कि मैं बच्चा बनकर आप से कुछ सीखने आया हूं|* पिछले वर्ष आप का चातुर्मास कोलकाता था| वहां से बहुत दूर चेन्नई आपका पधारना हुआ, बहुत सारे क्षेत्रों की डिमांड चातुर्मास की रहती है, लेकिन चेन्नई वासियों की अर्जी स्वीकार हुई और आपका भाग्य खुला, आपकी लॉटरी लगी है| पूज्य आचार्य महाश्रमण जी इस चेन्नई की धरा पर चातुर्मास कर रहे हैं|
अहिंसा यात्रा जिसमें नैतिकता, सद्भावना, नशा मुक्ति तीनों आयाम सफल होते हुए निरंतर प्रवृद्धमान है| संत हमेशा सुविधाओं के अभाव में भी स्वयं सुख की कामना न करते हुए लोगों के लिए, मानवता के लिए, जनता के लिए, भक्तों के लिए सुख देने के संदेश प्रसारित करते हैं| आत्मा को किस प्रकार सुखी बनाया जाए, आगे बढ़ाया जाए, मुक्ति की और पहुंचा जाए, यह मार्ग बताते हैं|
संत कृपारामजी ने एक कहानी के द्वारा समझाया किस प्रकार एक बच्चे के गले में फंसा हुआ सिक्का पैसे वाला निकालता है, उसी प्रकार ज्ञानी गुरु हमारे भीतर दबे हुए ज्ञान को हमारे समक्ष प्रकट करते हैं| ऐसा ही सौभाग्य हम सबको मिला है, चेन्नई वासियों का परम सौभाग्य कि वह इस समय का अधिक से अधिक उपयोग करें, ताकि सभी इस चातुर्मास को सफल बना सकें| आचार्य महाश्रमण जी निरंतर अत्यधिक परिश्रम करते हुए जनता के कल्याण के लिए अपना समय लगा रहे हैं, हम सभी का यह दायित्व है इस समय का अधिक से अधिक उपयोग करें| वैरागी बालक जगदीश ने अपने विचार व्यक्त किये|
  साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने फरमाया की मार्ग तो कहीं हैं गुरु सही रास्ता दिखाने वाले हैं, लेकिन सही मार्ग, सही राह गुरू ही बताते है| प्रश्न उठता हैं गुरु कौन?  गुरु वह होता है जो जीने की कला सिखाते हैं, सृजन कला का विकास करते हैं, जिनके प्रवचन से जीवन में रूपांतरण घटित होता है और व्यक्तित्व निर्माण के गुर बताते हैं| गुरू आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया बताते है| *गुरू से नई दृष्टि, नई सृष्टि, नई दिशा, नया बोध मिलता हैं|*
तेयुप अध्यक्ष श्री भरत मरलेचा एवं श्री गौतमचन्द समदड़ीया ने गुरूवर राजारामजी एवं संत कृपाराम जी का साहित्य द्वारा सम्मान किया|  जैन तेरापंथ नगर आने पर चातुर्मास व्यवस्था समिति की और से अध्यक्ष श्री धरमचन्द लुंकड़ ने अंगवस्त्र द्वारा अभिनन्दन किया| *श्रीमती नेहा मरलेचा ने आठ की तपस्या का प्रत्याख्यान किया|* कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने किया|

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