व्यक्ति के सम्यक कर्त्तव्यनिष्ठा के साथ आचार, विचार, व्यवहार के पालन से उसका व्यक्तित्व महान बन जाता हैं। वह शिष्य गुरू की आँखों का तारा बन जाता हैं, उनकी कृपा दृष्टि का पात्र बन जाता हैं।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ के सरताज, एकादशम पटधर महामनस्वी, महातपस्वी, समण संस्कृति के उदगाता, शान्तिदूत आचार्य श्री महाश्रमणजी ऐसे ही विरल व्यक्तित्व के धनी हैं।
आपने जिस उत्कृष्ट वैराग्य भाव से संयम ग्रहण किया, उससे भी उत्कृष्ट भाव से सम,शम,श्रम की त्रिवेणी के साथ अपने मुनि जीवन को पाल रहे हैं।
आपकी संघ और संघपति के प्रति प्रगाढ़ आध्यात्मिक श्रद्धा, विनम्रता, पापभिरूता, सर्वात्मना समर्पण भावना से अभीभूत हो आचार्य श्री तुलसी ने आपको मुनि मुदित से महाश्रमण मुदित और आचार्य महाप्रज्ञजी का अन्तरंग सहयोगी बनाया। आचार्य महाप्रज्ञजी ने आपकी त्यागमय जीवन शैली से आपको महातपस्वी और अपना उत्तराधिकारी बनाया।
अपनी जन्मभूमि, दीक्षाभूमि में आज ही के दिन विधिवत आचार्य पद पर आप आसीन हुए। आपके तेज की रश्मियाँ दिगदिगन्त में फैल रही हैं।
आज पट्टोत्सव के इस शुभ अवसर पर सम्पूर्ण मानव जाति आपके जनकल्याण के आध्यात्मिक उन्नति के कार्यों की सराहना करती हुई यही मंगलकामना करती है कि आप निरन्तर हमारा मार्गदर्शन करते हुए आप भी अपने लक्षित मंजिल की ओर गतिशील बने।