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ज्ञान वाणी

समय को जानें और करें समय का सदुपयोग: शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

समय को जानें और करें समय का सदुपयोग: शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
तमिलनाडु की धरती पर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ पुनः गतिमान हो चुके हैं। अब अहिंसा यात्रा का कारवां धीरे-धीरे हिन्द महासागर की ओर गतिमान है। मानों ज्ञान के महासागर आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ हिन्दुस्तान के चरण पखारने वाले महासागर हिन्द महासागर को अपने ज्योतिचरण से पतित पावन बनाने के लिए निकल पड़े हों।
गुरुवार को आचार्यश्री अपरी श्वेत सेना के साथ श्रीपेरम्बुदूर से मंगल प्रस्थान किया। प्रवास स्थल से आचार्यश्री कुछ किमी का विहार कर राजकीय मार्ग के किनारे बने राजीव गांधी स्मारक स्थल के निकट पहुंचे। श्रीपेरम्बुदूर का यह वह स्थान है जहां 21 मई 1991 को भारत के छठे प्रधानमंत्री रह चुके राजीव गांधी एक चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंचे थे, जहां मानवबम बिस्फोट में उनकी हत्या कर दी गई थी। आचार्यप्रवर उस स्मारक स्थल में पधारे। स्मारक स्थल को अपने ज्योतिचरण से पावन बनाकर आचार्यश्री पुनः गतिमान हुए और लगभग दस किलोमीटर का विहार परिसम्पन्न कर आचार्यश्री सुंगुवरछत्रम में निवासित श्री संतोष संचेती के आवास स्थल में पधारे। अपने आराध्य को अपने घर-आंगन में पाकर संचेती परिवार अतिशय उल्लसित था।
आवास परिसर के बाहर बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि समय आदमी के जीवन में अभिन्नता के साथ जुड़ा हुआ है। आदमी को समय को जानने का प्रयास करना चाहिए। समय मिलता है तो कोई काम हो सकता है। समय मानव जीवन का बहुत महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। आदमी को समय के साथ यथोचित रूप में चलने का प्रयास करना चाहिए। जो समय बीत जाता है, वह दुबारा प्राप्त नहीं हो सकता, इसलिए आदमी को अपने समय का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। जिस आदमी का समय धर्म, ध्यान, साधना, स्वाध्याय, सेवा अथवा अन्य किसी धार्मिक कार्य में लगता है, उसका जीवन सफल और जिसका समय पाप, अपराध और गलत कार्यों में लगता है, उसका समय अफल बन जाता है। आदमी को समय मात्र भी प्रमाद नहीं करना चाहिए और जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए।
सामान्यतया आदमी को 24 घंटे प्राप्त होते हैं। चाहे वह राजा हो, रंक हो, फकीर हो, गृहस्थ हो कोई भी सभी को 24 घंटे ही प्राप्त होते हैं। विशेष बात यह होती है कि आदमी उस समय का उपयोग कहां करता है। जिस तरह वर्षा का जल तो धरती पर सामान्य रूप से बरसता है, लेकिन वह कुण्ड में बरसता है तो पीने के काम आ जाता है और वह इधर-उधर गिरता है तो नाले में बह जाता है। आदमी को अपने मिले समय का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी कम से कम प्राप्त 60 घड़ियों में से दो घड़ी भी धर्म-ध्यान के लिए निकाले तो अच्छा क्रम हो सकता है। तेरापंथी श्रावक-श्राविकाओं को तो नाश्ते से पहले एक सामायिक करने का प्रयास करना चाहिए। यदि ऐसी धर्म की कमाई नित्य प्रति हो जाए तो उसका समय सफल और सदुपयोगी हो सकता है। समय के अनुसार आदमी को अपने जीवनशैली में बदलाव भी करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को समय के प्रति जागरूक रहने और उसके सदुपयोग का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के पश्चात आचार्यश्री ने स्थानीय लोगों को सम्यक्त्व दीक्षा और अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्प स्वीकार कराए। स्विटि संचेती ने मासखमण की तपस्या का प्रत्याख्यान कर अपने आराध्य का भावभीना अभिनन्दन किया। श्रीमती रंजना संचेती, श्री महेन्द्र संचेती, श्री गुरुनाथन आदि ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। कन्या मंडल और महिला मंडल की सदस्याओं ने पृथक्-पृथक् गीतों के माध्यम से अपने आराध्य की अभ्यर्थना की। संचेती परिवार से संबंधित बालक-बालिकाओं द्वारा अपने भावों की प्रस्तुति दी गई। राजस्थान सरकार की मंत्री डाॅ. जया दवे ने आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।

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