चेन्नई. मंगलवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज का प्रवचन कार्यक्रम हुआ। उपाध्याय प्रवर ने जैनोलोजी प्रेक्टिल लाइफ सत्र में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे औदारिक शरीर का निर्माण कर्मों से होता है। इसमें अनेक ऐसे स्थान होते हैं जहां से हम अपने कार्मण और तेजोशरीर के पास पहुंच सकते हैं। स्वयं के अन्तर की शक्ति का प्रवाह हमें पता होना चाहिए। हमारी ऊर्जा कहां अवरुद्ध हो रही है और कहां ओवरफ्लो है। अपने शरीर के स्पंदनों और ऊर्जा के बिंदुओं को समझने और उनसे अपनी शक्ति को बढ़ाने के प्रयोग बताए। वात, पित और कफ जैसे शरीर का होता है वैसे ही मन का भी होता है। शब्द से कल्पनाएं और कल्पनाओं से शब्द जन्मते हैं। बिना शब्द का चिंतन करें। उन्होंने अन्दर के अवरोध दूर कर अपनी प्रतिभा का जागरण कर कार्मण शरीर को निर्मल बनाने और तेजो शरीर को तेजस्वी बनाने और कर्मों को दहन करने के सूत्र समझाए।
मनुष्य शरीर को भोग, रोग और धर्म का भी घर कहा गया है। इसे धर्म का घर बनाएंगे तो भोग और रोग आपको परेशान नहीं करेंगे। सबसे पहले अपने मन को संभालें उसके बाद शरीर को। अगर मन को बचा लिया तो जीवन धर्ममय बन जाएगा। अपने मन को जख्मी न बनने दें। शब्दों की जिंदगी बनती भी है और बिगड़ती भी है, शब्दों का सामथ्र्य समझें।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि जिंदगी में विषधर बनना है या अमृत का घर बनना है। हमें जहर को ग्रहण या संग्रहित नहीं करना है। हम जिनके प्रति अपने मन में जहर रखते हैं उनको तो प्रभावित करें न करें स्वयं और स्वजनों को उससे प्रभावित करते रहते हैं। मन में जहर रखकर हम शांति से जी नहीं सकते। परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकते। अर्जुनमाली और चंडकोशिक ने अपना जहर छोड़ा तो परमात्मा प्रभु को प्राप्त कर पाए। जिनके प्रति मन में नफरत है उन्हें प्रेम करें। केवल गुस्सा या शिकायत न करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि जिससे गुस्सा और नफरत है उससे प्रेम करें। बड़े जब छोटों से क्षमायाचना करते हैं तो वे छोटों को तो बड़ा बनाते ही हैं, स्वयं का बड़प्पन और सर्वश्रेष्ठ बनता है।
आचारांग सूत्र में बताया कि अपने जीवन से ज्यादा अपने मकान की परवाह जो करते हैं उन्हें नासमझ कहा गया है। परमात्मा कहते हैं कि वो नासमझ व्यक्ति बार-बार जख्मी होते हैं। कर्मों से ज्यादा व्यक्ति की नासमझी उसे परेशान करती रहती है। जिन्होंने कर्मों के परेशानी में समझदारी रखी है, वे महान बने हैं। जिन्होंने अपनी समझ को नहीं छोड़ा उनके लिए शूली भी सिंहासन बन गए, उन्होंने कुष्टरोगी को भी सुन्दर बनाया। नासमझ को फूलों में भी कांटे चुभते हैं, वे परिस्थितियों और अन्य कारणों का बहाना बनाते हैं।
दगा देनेवाले इस संसार में आपको पल-पल मिलेंगे। लेकिन हमें बुद्धि और समझ से बचना होगा। किला बनाया जाता है होने वाले हमलों के प्रभाव से बचने के लिए, न कि हमला होने से रोकने के लिए। स्वयं के अंतरमन की कीमत को समझें और इस पर होने वाले नकारात्मकाओं के हमलों से बचें। नामझी से ही फेल होते हैं, खाई में गिरते हैं और ठगे जाते हैं। जो व्यक्ति खाई, गड्ढे और ठग को कारण मानता है वही बार-बार जख्मी होता है। परमात्मा प्रभु कहते हैं कि मरण को समझने वाला बार-बार दु:खी नहीं हो पाएगा। मकान जर्जर हो जाए तो रहने लायक नहीं रहता उसी प्रकार जब शरीर जर्जर हो जाए तभी मौत आती है। मृत्यु को वरदान समझें श्राप नहीं। जो मरण को समझ गया, वह परेशान नहीं होगा। सांसारिक व्यक्ति को आत्मा से ज्यादा शरीर प्रिय लगता है, मकान, कपड़े, सत्ता, संपत्ति प्रिय लगती है, इन्हीं में वह खुशी मनाता रहता है, यही प्रमाद है। असली खुशी बाहर की वस्तुओं में नहीं बल्कि आपकी अन्तरात्मा में है, उसे खोजें और जाने कि आपकी ऊर्जा कहां पर व्यर्थ हो रही है। नासमझी के कारण जो अपना था नहीं, है नहीं और कभी होगा भी नहीं, उसे अपना कहते रहते हैं और दु:खी होते हैं।
समझदारी न हो तो मन में अशांति रहती है। परमात्मा कहते हैं कि मूर्ख के साथ न रहें। मूर्ख का मालिक नहीं बनना और बुद्धिमान का नौकर भी बन जाने वाला व्यक्ति तिर जाता है। इस संसार में शरीर की बीमारी बताने और उसका इलाज करने वाले को फीस देते हैं और मन की बीमारी बताने और उसका इलाज करने वाले को दुश्मन समझते हैं। जो अपनी चेतना से प्रेम करता है उसके कर्मों का क्षय हो जाता है, उसे दु:ख के सागर में नहीं जाना पड़ेगा।
राजा श्रेणिक के चरित्र में बताया कि राजा श्रेणिक भगवान से अपने नरक से बचने का उपाय पूछता है और परमात्मा के बताए अनुसार हर संभव कोशिश करता है। वह तपोराधना करने की भावना करता है और नियम लेता है लेकिन पूरा नहीं हो पाता है। श्रेणिक अपनी संपत्ति, बल, समझाने-बुझाने सभी तरीकों को अपनाकर भी कालूसोकरी कसाई को हिंसा से रोक नहीं पाता है, अपनी दादी को भगवान के दर्शन करा नहीं पाता है, दासी के द्वारा भिक्षा भी मन से नहीं दिला पाता है और इसी प्रकार वे अपनी जिद पर अड़े रहते हैं। जिद के कारण व्यक्ति स्वयं का नुकसान करता है।
राजा के प्रयास असफल होते हैं पर निष्फल भी नहीं होते हैं। फलस्वरूप उसका सातवीं नारकी का बंध पहली नारकी तक कम हो जाती है और उसका तीर्थंकर नामकर्म का बंध होता है। प्रयासों की महिमा बहुत है, धर्म के प्रयास नियम टूटने के भय से रोकने नहीं चाहिए। राजा के सभी उपाय असफल रहने पर भी वह परमात्मा से अपनी नारकी के बंध तोडऩे के और उपाय पूछता है। कर्मों के बंधन तोड़े जा सकते हैं, यही सत्य है। परमात्मा प्रभु कहते हैं कि तुम्हारे अन्तर में जो समकित का उजाला हुआ है उससे तुम प्रेम करो। दूसरों को धर्म के सूर्य के प्रकाश में ले जाने पर तुम स्वयं एक दिन सूर्य बन जाओगे।
16 अक्टूबर से आयंबिल ओली की आराधना और पू. सुमतिप्रकाश महाराज की जन्मजयंती मनाई जाएगी। 18 अक्टूबर को 8 बजे प्रात: उत्तराध्ययन सूत्र का भव्य वरघोड़ा निकाला जाएगा सी.यू.शाह भवन से एएमकेएम ट्रस्ट में पहुंचेगा।