चेन्नई. हम सपनों के पीछे परिवार को समय नहीं दे पा रहे हैं। जिंदगी के अंत में वे पल ही मायने रखते हैं जो हमने अपने परिवार या मित्र के साथ गुजारे हैं।
राजेन्द्र भवन में मुनि संयमरत्न विजयजी व भुवनरत्न विजय युवा क्रांति शिविर में ‘सपनों के चक्कर में जीना भूल गए’ विषय पर प्रवचन दिया। मुनिद्वय ने कहा जिंदगी गुजर जाने के बाद परिवार याद आए तो वह व्यर्थ है। पहले हमारी जिंदगी बीतती थी और आज वो भागती है।
पहले हम पूरे मोहल्ले को जानते थे,लेकिन आज हमें यह भी पता नहीं कि दो घर छोडक़र कौन रहता है? पहले हम थोड़े में ही बहुत ज्यादा खुश रहते थे लेकिन आज बहुत ज्यादा होने पर भी हम खुश नहीं रह पाते। इस तरह से जीते हुए यदि हम हमारे सपने को पूरा कर भी लेते हैं तो हमारे साथ खुशियां बांटने वाला कोई नहीं होगा। कार्य और जिंदगी के बैलेंस को समझने की कोशिश करना चाहिए।
लेकिन दोनों में से किसे महत्व देना यह हम पर निर्भर करता है। दुनिया में हम बहुत काम करें लेकिन जिनके लिए हम काम करते हैं, पैसा कमाते हैं, पैसा बचाते हैं, घर बनाते हैं, उन्हें कभी भूलना नहीं चाहिए, क्योंकि यह जिंदगी एक बार ही मिलती है। जिन्हें ठीक ढंग से जीना आ जाता है, फिर उन्हें स्वर्ग पाने की चाहना नहीं रहती।
अमूल्य जीवन से ही स्वास्थ्य, धन व ज्ञान का मूल्य है। जीवन से ही चरित्र, रिश्ते व समाज का मूल्य है। जिस परिवार में प्रेम, आनंद, भाईचारा व त्याग की भावना हो, वह सदा-सदा के लिए स्वर्ग बना रहता है।