चैन्नई के साहुकारपेट स्थित श्री राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कहा सज्जन पुरुषों का संग कीर्ति का मूल बोता है, पाप को नष्ट कर देता है, हर्ष उत्पन्न करता है, श्रम (थकान) को रोकता है, बुद्धि का वैभव उत्पन्न करता है, शत्रुओं का नाश करता है, कल्याण एकत्रित करता है, मनोहर बुद्धि देता है तथा भय को ढंकता है, इसी प्रकार सज्जनों की संगत कल्पवृक्ष की तरह हमेशा उत्तम फल देने वाली होती है।
पर्यूषण पर्व यानी आत्मशुद्धि का पर्व। पर्व हमें कुसंग से दूर रहकर हमेशा सत्संग करने की प्रेरणा देता है। जिस प्रकार राजा के ललाट पर लगा हुआ कीचड़ भी कस्तूरी के तरह प्रतिभाषित होता है, रानियों के आभूषणों में लगा हुआ कांच भी हीरे की उपमा को प्राप्त होता है और आम के वृक्ष पर बैठा हुआ कौआ भी कोयल की तरह दिखता है, तो इसके पीछे एक ही कारण है उत्तम स्थान संग।
इसी तरह गुणहीन मानव भी उत्तम जीवों के संग से गुणों का स्थान प्राप्त कर लेता है। विस्तृत बुद्धि की संपदा जिसे सिद्ध है, ऐसे सत्संग से नीच व्यक्ति भी उत्तम पदवी प्राप्त करता है क्योंकि सुगंधयुक्त उत्तम पुष्पों के संग से सूत के धागे को भी राजा अपने मुकुट में धारण कर लेता है।
सज्जनों का संग करने से जो गुण उत्पन्न होते हैं, उनकी स्तुति करने के लिए यदि शेषनाग अपनी जीभ दे, ब्रह्मा अपनी आयु दें, मेरु पर्वत स्थिरता दे, बृहस्पति अपने वचनों का अतुल्य कौशल दे, महादेव सर्वज्ञता दे तथा चंद्र अपनी मनोहर कलाएं दे, तो ही उसकी स्तुति हो सकती है।
इस मौके पर मुनि को सहयोगी परिवार द्वारा कल्पसूत्र वोराया गया एवं सकल संघ द्वारा मुनि संयमरत्न विजय के 34वें वर्ष में प्रवेश करने पर जन्मदिवस की बधाई व उज्ज्वल भविष्य की शुभकामना दी।