चेन्नई. कोडम्बाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा साधु संतों की गोचरी समेत अन्य चीजों का ध्यान रखने वाले सही मायने में सच्चे श्रावक होते हैं। श्रद्धा के साथ धर्म और पुण्य के कार्य करने वाले श्रावक कहलाते हैं।
श्रद्धा और विवेक होने पर मनुष्य पुण्य और पाप को अच्छे से जान जाता हैं। दिखावे के कार्य कर श्रावक नहीं बना जा सकता है। साधु संतों की हर संभव मदद के लिए तैयार होने वाले असली श्रावक होते है।
जैसे पिता को अपने बच्चे के प्रति वात्सल्य का भाव होता है। उसी प्रकार से साधु के प्रति भाव रखने वाले सच्चे श्रावक होते हैं।
अगर कोई साधु कोई गलती कर दे तो कुछ श्रावक रास्ता बदल देते हैं। लेकिन सच्चे श्रावक उस गलती के बारे में साधु को बता देते हैं। ऐसे श्रावक गलती का प्रचार करने के बजाय जीवन में सुधार करते हैं।
जीवन में आगे जाना है तो सच्चा श्रावक बनने का प्रयास करें। जिस प्रकार से बच्चों के जीवन में कमीं आने पर मां बाप बच्चे को सुधरने की सलाह देते हैं। उसी प्रकार से साधु जीवन मे अगर कोई गलती हो तो उसका प्रचार नहीं सुधार की सलाह देनी चाहिए।
जुबान पर लगाम नहीं रखने वाले मनुष्य प्रचार करते है लेकिन ऐसा करने से उनका खुद का नुकसान होता है। जिनकी जुबान में लगाम नहीं होती उनके रिश्तों में मजबूती नहीं होती।
इसलिए श्रावक को घर की बात हो या बाहर की खुद तक रखनी चाहिए। पीठ पीछे किसी की बात करना अच्छे मनुष्य की पहचान नहीं होती है।
दिखावे से कोई अच्छा नहीं बन सकता है। उसके लिए जुबान पर नियंत्रण की जरूरत होती है। जो पुण्यवाणी आत्मा इन मार्गो पर चलेगी उनका कल्याण हो जाएगा।