चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम जैन मेमोरियल सेन्टर में विराजित गुरुणी उमरावकंवर ‘अर्चना’ की सुशिष्याएं साध्वी कंचनकंवर के सानिध्य में 25 अगस्त को साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधा’ ने कहा कि जो मनुष्य अपना कर्तव्य पालन करता है वह जीवन में कभी ठोकर नहीं खाता, सदा उन्नति करता है।
सभी मनुष्य सदा कुछ न कुछ चाहते हैं। यदि अपनी सोच सकारात्मक रखें तो आनन्दमय जीवन जी सकते हैं। नकारात्मक सोच से लालसा बढ़ती जाती है। महावीर के तीन सिद्धांत- अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह अपना लें तो स्वयं का राजा स्वयं बन सकते हैं। परिग्रह भी मां के समान होना चाहिए। मां भोजन इक_ा करती है, बनाती है और सभी को खिलाकर प्रसन्न होती है।
उसी प्रकार धन कमाएं, इक_ा भी करें तो पुन: सद्कार्यों में उसे खर्च भी करें, जरूरतमंदों की सहायता करें, न्यायपूर्वक कमाएं, ईमानदारी रखें। जीवनरूपी सरोवर में धनरूपी पानी आना भी चाहिए और खर्च भी हो इसका ध्यान रखें। नहीं तो जीवन दुखदायी बन जाएगा, आप ईष्र्या के पात्र बन जाएंगे। जब संसार में विदा होंगे तो कुछ भी साथ नहीं ले जाएंगे। व्यय का मौका आए तो व्यय भी करें।
जीवन में नीतिकारों की चार बातों को अपना लें तो जीवन सदा सुखी बनेगा। पहली-किसी को क्लेश उत्पन्न हो ऐसी कटु वाणी न बालें।
हमारा कर्मसत्ता रिकार्ड करती है। समय आने पर आपको भी वैसे ही व्यवहार सहना पड़ेगा। दूसरी- रोग बढ़े ऐसा भोजन न करें, कम खाएं। तीसरी- कर्ज बढ़े ऐसा खर्च न करें।
आज हर व्यक्ति लोन पर जीने लगा ह और चुका न पाने पर दुखी होता है। चौथी- पाप बढ़े ऐसी सलाह या काम न करें। पुण्य चाहते हुए भी नहीं करते हैं और पाप न चाहते हुए भी करते हैं।
व्यक्ति थोड़े से लोभ के लिए हिंसा जैसे पापों से भी नहीं चूकते हैं, ऐसा न करें। वैद्य, गुरु सही सलाह देकर सदा प्रसन्न होते हैं।
साध्वी डॉ.उदितप्रभा ‘उषा’ ने कहा कि सभी जीव चाहते हैं कि उनका जीवन आनन्द, उल्लास और हर्ष से बीते, लेकिन ऐसा तभी होगा जब हम अपने कर्तव्य को समझें। आज विज्ञान ने बहुत-सी कलाएं, तेज दौडऩा, उडऩा, तैरना सब सिखाए हैं लेकिन जीवन जीने की कला नहीं सीखाया। दूर की वस्तुओं का ज्ञान कराया है लेकिन पास की वस्तुओं से बहुत दूर कर दिया है।
धर्म हमें पास की वस्तुओं का ज्ञान कराकर उनसे जुड़े रहना और जीना सीखाता है। आज थोड़ी-सी अनबन हो गई कि रिश्ते टूट जाते हैं। माता-पुत्र चाहे कितने ही झगड़ लें लेकिन फिर भी वह पुत्र अपनी मां की पहचान को बदल नहीं सकता, वही उसकी मां रहेगी।
पुराने समय में माताएं अपने बच्चों के पालन-पोषण के साथ धर्म-वैराग्य के संस्कारों से भी सिंचित करती थी।
लेकिन आधुनिक माताएं अपने बच्चों को डर, भय, लालच और विषय-विकार भावनाओं के साथ पालन-पोषण करती हैं, जो उनके लिए दुखदायी बनता है।
जिन माताओं ने अपना कर्तव्य पालन से, बच्चों को संस्कारों से पाला उन्होंने नया इतिहास रचा।
प्रकृति अपना कर्तव्य-पालन करती है, हवा, पानी, ऋतुएं, दिन-रात, सूर्य, चंद्रमा सभी।
हमें भी अपनी संतानों को धर्म-वैराग्य व उत्कृष्ट संस्कार बच्चों को देकर अपना कर्तव्य पालन करना चाहिए।
मानव कर्तव्य पालन से महामानव बनता है और पशु कर्तव्य-पालन करे तो वह भी तीर्यंच गति में भी अपना नाम अमर कर सदा स्मरणीय होता है। पन्नाधाय का बलिदान और महाराणा का चेतक घोड़ा तथा जटायु के उदाहरण हमारे सामने हैं।
गृहस्थ जीवन में भी जो मनुष्य कर्तव्यों का पालन करे, उन माता-पिता का जीवन सार्थक है। उनका जीवन आनन्द, उल्लासयुक्त होता है। पन्नाधाय ने अपने बेटे का बलिदान देकर उदयसिंह को बचाया और सुरक्षित पुन: राजा बनाकर स्वामीभक्ति को निभाया, अपना कर्तव्य पालन किया और इतिहास में अमर हो गई।
कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति के सामने कितनी ही चुनौतियां आ जाए, वह अपनी सूझबूझ से भरत चक्रवर्ती के समान सदा सही निर्णय लेता है। हम भी अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक रहें तो हमारा जीवन उल्लासमय बनेगा।
चातुर्मास स्थल पर महावीर इंटरनेशनल द्वारा लगाए गए नेत्र शिविर के रोगियों को चश्मों का वितरण किया गया। धर्मसभा में अनेकों तपस्वियों द्वारा विभिन्न तपों के पच्चखान लिए गए। चंद्रपुर, दुर्ग, छत्तीसगढ़ और राजस्थान से अनेकों श्रद्धालु उपस्थित हुए।